दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) की एक बैच इस समय मैरिटल रेप (Marital Rape PIL) को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इस बीच, दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक सुनवाई के दौरान अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि पति के परिवार पर सिर्फ दबाव बनाने के लिए वैवाहिक मामलों में बलात्कार की शिकायतों को दर्ज करने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखकर दुख होता है।
19 जनवरी, 2022 के अपने आदेश में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद (Justice Subramonium Prasad) ने कहा कि यह न्यायालय इस बात से व्यथित है कि पति के परिवार पर दबाव बनाने के लिए वैवाहिक मामलों में पति, ससुर, देवर या परिवार के किसी अन्य पुरुष सदस्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए ऐसी शिकायतें दर्ज कराने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
क्या है मामला?
वर्तमान याचिका धारा 482 Cr.P.C के तहत अपराधों के लिए पुलिस स्टेशन हरि नगर में दिनांक 15.12.2020 को दर्ज एक FIR को रद्द करने के लिए दायर किया गया है। इस मामले में आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), धारा 377 (अप्राकृतिक सेक्स), धारा 354 (महिला पर हमला), धारा 506 (आपराधिक धमकी), धारा 509 (महिला की शील भंग) और धारा 34 (सामान्य इरादे से आपराधिक अधिनियम) के तहत केस दर्ज हुआ था। वर्तमान FIR महिला और उसके पति एवं ससुराल वालों के बीच वैवाहिक विवाद का परिणाम थी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द किया FIR
अदालत ने FIR को इस आधार पर रद्द कर दिया कि पार्टियों ने दिल्ली हाई कोर्ट मध्यस्थता और सुलह केंद्र के समक्ष एक समझौते द्वारा अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया था। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता के ससुर के खिलाफ बलात्कार का आरोप होने के बावजूद, इस न्यायालय का मत है कि वर्तमान कार्यवाही को जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि आपसी सहमति से तलाक के लिए एक याचिका फैमिली कोर्ट में दायर की गई थी और पार्टियों के बीच विवाह भंग हो गया था।
पति द्वारा भुगतान की गई निपटान राशि
दिनांक 29.11.2021 के निपटान समझौते के अनुसार, पति ने शिकायतकर्ता पत्नी को स्त्रीधन, दहेज लेख सहित उसके सभी दावों के पूर्ण, अंतिम निपटान और रखरखाव के लिए 65,00,000 रुपये (65 लाख रुपये) का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी।
पति पहले ही शिकायतकर्ता पत्नी को प्रथम प्रस्ताव की कार्यवाही के समय 10,00,000 रुपये (10 लाख रुपये) और कार्यवाही के समय 25,00,000 रुपये (25 लाख रुपये) की राशि का भुगतान कर चुका है। शेष 30,00,000 रुपये (30 लाख रुपये) का भुगतान FIR रद्द करने के समय किया जाना था।
आपराधिक मामले दर्ज करने वाली पत्नी का बयान
शिकायतकर्ता पत्नी का कहना है कि उसने समझौते के अनुसार पूरी राशि प्राप्त कर ली है और याचिकाकर्ताओं के साथ अपने सभी वैवाहिक विवादों को अपनी मर्जी से बिना दबाव, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के सुलझा लिया है। महिला ने कहा कि वह उसके साथ आगे नहीं बढ़ना चाहती है। आगे मामला पेश करें और अनुरोध करें कि वर्तमान FIR और उससे होने वाली कार्यवाही को रद्द किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि यह न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर रहा है। अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच हुए समझौते को ध्यान में रखते हुए और तत्काल FIR रद्द करने के मद्देनजर तथ्य यह है कि वैवाहिक विवादों को दिल्ली हाई कोर्ट मध्यस्थता और सुलह केंद्र के समक्ष सुलझा लिया गया है और विवाह भंग हो गया है। इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
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