दिल्ली की एक अदालत (Delhi Court) ने अपनी बहू के साथ क्रूरता करने के आरोपी पति के माता-पिता को यह कहते हुए बरी कर दिया है कि वैवाहिक अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए बनाए गए कानून को निर्दोष लोगों के उत्पीड़न के लिए एक उपकरण (tool) बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। बहू दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल है। यह मामला पिछले साल जून 2021 का है।
क्या है मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने तीस हजारी कोर्ट में एक सरकारी वकील के रूप में खुद को गलत तरीके से पेश किया, जबकि वह एक लोअर डिवीजनल क्लर्क के रूप में तैनात था। इसमें आगे आरोप लगाया गया था कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था।
मेट्रोपॉलिटन कोर्ट का आदेश
अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता की झूठी गवाही, गवाहों को पेश करना और मामले में दस्तावेजों की जालसाजी शिकायतकर्ता के आचरण पर प्रकाश डालती है। आदेश पारित करते हुए मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिवानी चौहान ने कहा कि उसने विभिन्न आरोपों को झूठा और मनगढ़ंत बनाया है और आरोपी को परेशान करने के लिए महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाया है एवं आईपीसी के प्रावधानों का दुरुपयोग किया है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसी भयावह परिस्थितियों में अदालत से मूकदर्शक के रूप में बैठने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जहां कानून (जो पूरी तरह से पीड़ितों के लिए सामाजिक न्याय के लिए बनाया गया है) का दुरुपयोग और दुर्व्यवहार किया जा रहा है और निर्दोष व्यक्तियों के उत्पीड़न का एक टूल बनाया गया है।
अदालत ने यह भी कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री थी कि “स्त्रीधन” (streedhan) सूची किसी व्यक्ति द्वारा जाली और गढ़ी गई थी, जिसकी पहचान की जानी चाहिए और उस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
माननीय अदालत ने दंपति को बरी कर दिया और अदालत ने ससुराल वालों को 10,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कहा कि उन्हें कई वर्षों तक मुकदमे की बदनामी का सामना करना पड़ा है और इस सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए कि गलत करने वालों को तुच्छ मुकदमे का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
एमडीओ टेक
– क्या इस मामले में सिर्फ दंपत्ति को बरी किया जाना ‘न्याय’ है?
– जहां जज की मंशा की सराहना की जा रही है, वहीं समाज में बरसों प्रताड़ना और नाम बदनाम करने के बाद मुआवजे के तौर पर 10 हजार रुपये न्याय नहीं करता।
– ऐसा झूठा और तुच्छ मामला दर्ज करने वाली महिला और उसके परिवार को दोषी क्यों नहीं ठहराया जाता?
– जब व्यवस्था ऐसी महिलाओं को किसी भी परिणाम से बचने की अनुमति देती है, तो इसे दोहराने का डर लगभग शून्य होता है।
– जज ने जहां इस जाली दस्तावेजों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए कहा है, वहीं इस तरह की कानूनी लड़ाई में शायद ही कोई अंत हो।
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ARTICLE IN ENGLISH:
Delhi Court Acquits In-Laws In False Dowry Harassment Case | Grants Rs 10,000 Compensation After Suffering Trial For Several Years
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