दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि कोई व्यक्ति इस आधार पर भरण-पोषण राशि में कटौती नहीं कर सकता है कि खर्चों को पूरा करने के लिए उसकी पत्नी प्रयास कर रही है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पत्नी आर्थिक तंगी के कारण अपने और बच्चे के दैनिक खर्चों की पूर्ति के लिए काम करना शुरू कर देती है तो यह उसके पति द्वारा उसे दिए जाने वाले गुजारा भत्ते को कम करने का आधार नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट ने ये टिप्पणियां एक व्यक्ति द्वारा निचली अदालत के उस आदेश के खिलाफ अपील पर कीं, जिसमें अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए 8,000 रुपये प्रति माह और अपने नाबालिग बच्चे के लिए 3,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने का निर्देश देने वाले आदेश को संशोधित करने से इनकार कर दिया गया था। पति ने इस आधार पर भरण-पोषण राशि में कटौती की मांग की थी कि कोरोना महामारी के कारण उसकी कमाई कम हो गई है और पत्नी ने कमाना शुरू कर दिया है। उसने यह भी दावा किया कि पत्नी ने अपने रोजगार और कमाई के तथ्य को छुपाया था।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि पति के भुगतान के दायित्वों को पूरा करने में विफल रहने के बाद पत्नी द्वारा खर्चों को पूरा करने का प्रयास उसे दिए गए अंतरिम भरण-पोषण को कम करने का कारण नहीं हो सकता है। हाई कोर्ट के समक्ष पति ने यह दलील देते हुए भरण-पोषण राशि में कटौती का अनुरोध किया कि इस तथ्य के अलावा कि उसकी कमाई कोविड-19 के कारण कम हो गई। इस व्यक्ति ने दलील दी कि उसकी पत्नी ने एक स्कूल में काम करना शुरू कर दिया था और बाद में एक स्टार्ट-अप में नौकरी कर ली।
हाई कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि पति पर लगभग 4,67,000 रुपये का बकाया था। यदि पत्नी अपने और बेटी के दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए काम करना शुरू कर देती है, तो इसे भरण-पोषण राशि कम करने का आधार नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने हाल में दिए आदेश में कहा, “प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा अपने खर्चों को पूरा करने के लिए 6,000 रुपये से 10,000 रुपये की आय का सृजन, पति भरण-पोषण राशि का भुगतान करने के अपने दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहा है और उस पर 4,67,000 रुपये से अधिक का बकाया है, इसे अंतरिम भरण-पोषण को संशोधित/कम करने का कारण नहीं माना जा सकता है।”
अदालत ने कहा कि पति एक वरिष्ठ वास्तुकार है, जिसके पास 20 साल से अधिक का अनुभव है। कोरोना महामारी के दौरान हालांकि उसके व्यवसाय में गिरावट आई थी, लेकिन यह फिर से फल-फूल गया है। पति की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि प्रतिवादी ने 6,000 रुपये से 10,000 रुपये की आय का कुछ स्रोत बनाकर अपने खर्चों को पूरा करने का प्रयास किया, जहां पति गुजारा भत्ता देने के अपने दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहा है।
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