सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 64 को इस आधार पर चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया कि उक्त धारा समन किए गए व्यक्ति की ओर से समन स्वीकार करने में असमर्थ परिवार की महिला सदस्यों के साथ भेदभाव करती है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, आपराधिक कानून में एक प्रावधान है कि किसी अदालत द्वारा जारी समन को व्यक्ति के घर की कोई महिला सदस्य स्वीकार नहीं कर सकती। इसके पीछे कारण ये है कि यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, यानी CrPC की धारा 64 में बनाया गया था। इसके मुताबिक घर के किसी बालिग पुरुष सदस्य को ही समन की तामील कराई जा सकती है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करने को तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता का तर्क
लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह प्रावधान महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि धारा 64 इस प्रकार है:- “जहां समन जारी किए गए व्यक्ति को उचित परिश्रम के बाद भी तलाश नहीं किया जा सकता, वहां उसके साथ रहने वाले उसके परिवार के किसी वयस्क पुरुष सदस्य को उसके लिए समन की तामील की जा सकती है …।” याचिका के अनुसार, CrPC 1908 में प्रतिवादी के परिवार के किसी भी वयस्क सदस्य को उनके जेंडर की परवाह किए बिना समन तामील किया जा सकता है, CrPC, जिसे CPC के 65 वर्षों के बाद अधिनियमित किया गया” उसका प्रावधान अराजक और हठधर्मितापूर्ण है।
यह प्रकट करता है कि “CrPC परिवार की किसी वयस्क महिला सदस्य को समन प्राप्त करने के लिए सक्षम नहीं मानती।” याचिका के अनुसार, समन किए गए व्यक्ति की ओर से सम्मन प्राप्त करने के लिए महिला परिवार के सदस्यों को बाहर करना भारत के संविधान के आर्टिकल 14 और 15 के तहत महिलाओं के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। आर्टिकल 19 के तहत उन्हें जानने का अधिकार गारंटीकृत है। (1) (A) भारत के संविधान के, और भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत उन्हें गरिमा के अधिकार की गारंटी दी गई है।
केंद्र से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। साथ ही अटार्नी जनरल आर वेंकेटरमनी को शीर्ष अदालत की सहायता करने को कहा है। याचिका में आगे कहा गया है कि मद्रास हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 64 के तहत महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को चुनौती देते हुए जी. कविता बनाम भारत संघ टाइटल से एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कानून और न्याय मंत्रालय, भारत संघ को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया था। उसमें कानून मंत्रालय और न्याय विभाग, भारत संघ ने महिलाओं की निजता की रक्षा के लिए उन्हें समन न देने का समर्थन किया।
क्या है वर्तमान प्रावधान?
इसमें कहा गया है कि यह प्रावधान पीड़ित के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत गारंटीशुदा त्वरित सुनवाई के अधिकार को भी खतरे में डालता है। याचिका के अनुसार, कार्यवाही में काफी देरी करने के अलावा CrPC की धारा 64 अन्य सभी संबंधित हितधारकों के लिए भी मुश्किलें पैदा करती है। इसके अतिरिक्त याचिका में कहा गया है कि प्रावधान निम्नलिखित स्थितियों के लिए जिम्मेदार नहीं है:-
A. जब समन किया गया व्यक्ति केवल महिला परिवार के सदस्यों के साथ रहता है या; B.जब समन की तामील के समय उपलब्ध एकमात्र व्यक्ति एक महिला हो। इसमें कहा गया है कि ऐसी स्थितियों की संभावना विशेष रूप से पुरुषों और महिलाओं के बीच कार्यबल में भारी जेंडर अंतर के आलोक में है, यानी केवल 22% भारतीय महिलाएं काम पर हैं, जिसका मतलब है कि शेष 78% महिलाएं घर पर हैं।
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