इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) उस स्तर की सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति, उन्नति और स्थिरता प्रदान नहीं करते हैं जैसा कि इस देश में पारंपरिक विवाह करता है। खासकर, ऐसे रिश्ते टूटने की स्थिति में अक्सर महिलाओं को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। अपने लिव-इन पार्टनर के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि अधिकांश मामलों में कपल के बीच ब्रेकअप हो जाता है। ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर के लिए समाज का सामना करना मुश्किल हो जाता है।
क्या है पूरा मामला?
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, हाई कोर्ट एक महिला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर पर लगाए गए कथित रेप मामले की सुनवाई के दौरान उपरोक्त टिप्पणी की। याचिकाकर्ता अदनान के वकील ने दलील दी थी कि पीड़िता ने CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में स्वीकार किया है कि वह याचिकाकर्ता के साथ एक साल से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी और अपनी इच्छा से शारीरिक संबंध बनाया एवं वह गर्भवती हो गई।
उन्होंने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने लड़की के साथ शादी करने से इनकार कर दिया तो उसने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई और आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता और उसके दो साथियों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। मेडिकल जांच में लड़की 19 वर्ष आयु की पाई गई, इसलिए वह बालिग है।
लड़की के वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कक्षा आठ की पढ़ाई पूरी कर स्कूल छोड़ते समय जारी प्रमाण पत्र के मुताबिक, पीडिता की आयु 16 साल और 8 महीने है। उन्होंने कहा कि इसलिए याचिकाकर्ता को पीड़िता के साथ विवाह करने के लिए निर्देश दिया जा सकता है, क्योंकि उसने पीड़िता का जीवन बर्बाद किया।
हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह रूपी संस्था जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकार्यता, प्रगति और स्थिरता उपलब्ध करा सकती है, वह लिव-इन रिलेशनशिप द्वारा कभी उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। दुष्कर्म के आरोपी लिव-इन पार्टनर अदनान की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि ज्यादातर मामलों में युगल के बीच संबंध टूट जाते हैं जिसके बाद महिला साथी के लिए समाज का सामना करना कठिन हो जाता है।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि अदालतों में ऐसे मामलों की भरमार है जहां सहजीवन संबंधों में रहने वाली महिला साथी समाज के व्यवहार से परेशान होकर खुदकुशी कर लेती है। अदालत ने कहा कि इस देश में विवाह रूपी संस्था के अप्रचलित होने के बाद ही सह-जीवन संबंध को सामान्य माना जाएगा जैसा कि विकसित देशों में है।
अदालत ने इस बात पर अफसोस जताया कि प्रसारित होने वाली फिल्में और TV धारावाहिक विवाह की संस्था को खत्म करने में योगदान दे रहे हैं। आदेश में कहा गया है कि शादीशुदा रिश्ते में पार्टनर के प्रति बेवफाई और स्वतंत्र लिव-इन रिलेशनशिप को प्रगतिशील समाज की निशानी के रूप में दिखाया जा रहा है। इसमें आगे कहा गया है, “अदालतों में ऐसे मामलों की कोई कमी नहीं है, जहां पूर्व लिव-इन रिलेशनशिप की महिला साथी सामाजिक बुरे व्यवहार से परेशान होकर आत्महत्या कर लेती है।”
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