यह देखते हुए कि यौन अपराधों में झूठा आरोप बढ़ रहा है, इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने पिछले सप्ताह एक विवाहित महिला के साथ गैंगरेप करने के आरोपी दो पुरुषों को जमानत दे दी। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि जमानत याचिका पर फैसला सुनाते समय FIR दर्ज करने में अत्यधिक देरी पर विचार किया जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
आरोपियों पर आरोप है कि उन्होंने 1 जुलाई 2019 को कथित पीड़िता के साथ वाराणसी में उसके कमरे में दुष्कर्म किया। हालांकि, कथित पीड़िता ने घटना की जानकारी अपने पति को 3 अगस्त, 2019 को ही दी, जब वह मेरठ (वाराणसी से) पहुंची। इसके बाद, 5 अगस्त, 2019 को पुलिस स्टेशन में पति द्वारा आरोपों से युक्त आवेदन दिया गया और धारा 376-D, 342, 506 IPC के तहत मामला दर्ज किया गया।
उक्त FIR को वाराणसी पुलिस द्वारा SSP मेरठ द्वारा भेजे गये पत्र पर जांच के लिए भेजा गया था, क्योंकि मामला जिला वाराणसी के अधिकार क्षेत्र में आता है। फिर 9 सितंबर, 2019 को FIR दर्ज किया गया था। आरोपियों को फरवरी-मार्च 2020 में मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था। इसलिए, उन्होंने मामले में जमानत के लिए तत्काल याचिका दायर की।
आरोपियों की दलील
अभियुक्तों ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि पीड़िता और आवेदक ‘जनेऊ क्रांति अभियान’ के नाम से चलाए जा रहे एक ही संगठन में कार्यरत थे। दरअसल, पीड़िता संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष थी और उसका पति/मुखबिर कोषाध्यक्ष था। अभियुक्त/आवेदक ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि उन्हें मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है, क्योंकि उन्होंने पीड़िता और आश्रम के अन्य कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही अवैध गतिविधियों के बारे में पूछताछ की थी।
आवेदक ने आगे कहा कि आवेदक-चंदन कुमार द्वारा संगठन के संस्थापक (भगवान चंद्र मोहन) की अवैध गतिविधियों से संबंधित एक व्हाट्सएप ग्रुप में कई मैसेज पोस्ट करने के तुरंत बाद आवेदक के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। उसने यह भी कहा गया कि घटना का कथित चश्मदीद भी संगठन का सदस्य है। अंत में यह प्रस्तुत किया गया कि सभी के पास मोबाइल है और पीड़िता अपने पति को मोबाइल पर ही कहानी सुना सकती थी और अंकित या खुद के माध्यम से वाराणसी में FIR दर्ज करवा सकती थी। या FIR दर्ज कराने के लिए मेरठ जा सकती थी।
पीड़िता का तर्क
दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि आवेदकों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप का जघन्य कृत्य किया है और भारतीय समाज में यह संभव नहीं है कि एक महिला पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया जाए। यह भी तर्क दिया गया कि FIR दर्ज करने में देरी स्वाभाविक है, क्योंकि पीड़ित भारतीय मूल्यों के कारण अत्यधिक दबाव में थी कि वह उसके साथ किए गए कृत्य को प्रकट न करे और उसे आवेदकों द्वारा वासना से बाहर निकाला गया था। वह अपने कमरे में अकेली पाई गई थी। इस दौरान यह भी प्रस्तुत किया गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-A के प्रावधानों के अनुसार, पीड़िता के बयान की पुष्टि की आवश्यकता नहीं है और उस पर भरोसा किया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट
हालांकि, मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद FIR दर्ज करने में अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए कोर्ट ने आरोपियों को जमानत दे दी। जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने कहा कि 1983 के एक मामले (भारवाड़ा भोगिनभाई हिरजीभाई बनाम गुजरात राज्य) में सर्वोच्च न्यायालय की राय के बाद से कि ‘गंगा में बहुत पानी बह चुका है’ कोई भी लड़की भारतीय समाज में बदनाम होने से बचने के लिए किसी व्यक्ति के खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा मामला दर्ज नहीं करेगी।
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