बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (Bar Council of Maharashtra and Goa) को कई पुरुष वकीलों द्वारा दायर एक याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें एक महिला वकील का नामांकन समाप्त (Enrolment Terminated) करने की मांग की गई है। हालांकि, मंगलवार को जब कार्यवाही हुई तो महिला वकील कोर्ट में मौजूद नहीं थी।
क्या है पूरा मामला?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, वकील सुभाष झा, घनश्याम उपाध्याय और अन्य ने महिला वकील द्वारा बलात्कार और छेड़छाड़ के लिए उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। राहत पाने की दलील देते हुए झा ने मंगलवार को कहा, “क्या इस तरह की महिला का कभी ‘बलात्कार’ हो सकता है? क्या हम ऐसे वकीलों को प्रैक्टिस करने की आड़ में घूमने और हंगामा करने दे सकते हैं?”
झा ने आगे कहा, “उसने (पीड़िता) कहा कि वह उपाध्याय को पिता समान मानती थी और बाद में उसने उसके खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया। मैंने हस्तक्षेप किया और इसलिए, मेरे साथ-साथ अन्य लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है जिन्होंने मामले में हस्तक्षेप किया था।”
उन्होंने आगे कहा क्या हम ऐसे वकील को घूमने फिरने का जोखिम उठा सकते हैं जो हर अदालत की कार्यवाही को हाईजैक कर सके? जब हम अग्रिम जमानत याचिका दायर करते हैं, तो वह हंगामा करती है। वह विक्टिम कार्ड खेलती रहती है और यह बंद होना चाहिए।”
सरकारी वकील संगीता शिंदे ने पीठ को बताया कि पुलिस द्वारा 2021 के इस मामले में अभी तक चार्जशीट दायर नहीं की गई है। चूंकि जांच अधिकारी G20 में व्यस्त थे, इसलिए मामले पर निर्देश नहीं ले सके। जस्टिस एएस गडकरी और पीडी नाइक की बेंच ने शिंदे को हलफनामा दाखिल करने को कहा।
पीठ ने बार काउंसिल का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील मकरंद बालोर से यह भी पूछा कि इस मुद्दे पर उसका क्या रुख है। बालोर ने कहा, “यह महिला बार काउंसिल सदस्य के रूप में नामांकित है। जरूरत पड़ने पर मैं एक हलफनामा दाखिल करूंगी।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर महिला के खिलाफ आरोप इतना गंभीर है तो शिकायत दर्ज की जा सकती थी। सामान्य प्रक्रिया यह है कि शिकायत को एक समिति को भेजा जाता है और फिर अनुशासनात्मक समिति निर्णय लेगी।”
यह सुनकर झा (जिन्होंने औपचारिक रूप से बार काउंसिल में शिकायत दर्ज नहीं कराई है) ने कहा, “हम उस संभावना का पता लगाएंगे।” खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 12 जनवरी 2023 के लिए स्थगित कर दी।
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.