बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) ने अपने एक हालिया आदेश में एक महिला को निर्देश दिया है कि वह अपने पति और ससुराल वालों को चार दिनों के लिए बच्चों से मिलने की अनुमति दे। अदालत ने माना कि बच्चों को माता-पिता के साथ-साथ दादा-दादी से भी प्यार और स्नेह प्राप्त करने का अधिकार है।
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई की सिंगल पीठ ने पिछले सप्ताह गुरुवार को आदेश पारित करते हुए कहा कि बच्चों को अपने दोनों माता-पिता और दादा-दादी से प्यार-दुलार पाने का हक है और यह उनके व्यक्तिगत विकास एवं भले के लिए जरूरी भी है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने पुणे निवासी व्यक्ति और उसके माता-पिता को बच्चों से मिलने की इजाजत दे दी।
क्या है पूरा मामला?
2018 में दोनों अलग हो गए थे और तब से उनके पास 10 वर्षीय जुड़वां बेटों की कस्टडी रखने की व्यवस्था थी। बॉम्बे हाई कोर्ट पुणे के एक 38 वर्षीय पिता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पिता का दावा है कि जून, 2020 से उसे अपने बच्चों से मिलने नहीं दिया गया है, जबकि पिछली बेंच ने उसे मिलने का निर्देश दिया था।
पिता ने अपने वकील अजिंक्य उडाने के माध्यम से अस्थायी कस्टडी की मांग की और अदालत को सूचित किया कि वह अवमानना की कार्यवाही भी शुरू करेंगे क्योंकि बच्चों के दादा को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं और वह अपने पोते को देखना चाहते थे। उडाने ने अदालत को बताया कि हाई कोर्ट के 10 मार्च, 2022 के आदेश के बावजूद बच्चों की मां ने उनके जन्मदिन पर अपने पिता से मिलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट का आदेश
पीठ ने देखा कि कैसे बच्चों को माता-पिता और दादा-दादी दोनों के प्यार और स्नेह का अधिकार है और यह उनके व्यक्तिगत विकास और भलाई के लिए आवश्यक भी है। हाई कोर्ट ने पुणे निवासी व्यक्ति और उसके माता-पिता को बच्चों से मिलने की इजाजत देते हुए कहा कि बच्चे माता या पिता जिसके पास नहीं रह रहे हैं, उसे माता या पिता को अपने बच्चों के साथ अच्छा समय बिताने से वंचित नहीं किया जा सकता।
इस प्रकार अदालत ने उस व्यक्ति को चार दिनों के लिए अपने बच्चों से मिलने की अनुमति दे दी। इसके साथ ही मध्यस्थता के लिए दंपति के बीच जारी विवाद को हाई कोर्ट की पूर्व जस्टिस (सेवानिवृत्त) शालिनी फनसालकर-जोशी के पास भेज दिया, जो मध्यस्थ के रूप में कार्य करेंगे और पार्टियों की सहायता करेंगे। कोर्ट ने कहा कि एक सौहार्दपूर्ण समझौते का छह महीने के भीतर रिपोर्ट जमा करें।
कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता-पिता को मामले की मेरिट में आए बिना 14 अप्रैल से 16 अप्रैल तक बच्चों से मिलने की अनुमति दी जा रही है। आदेश के मुताबिक प्रतिवादी-मां बच्चों को 14 अप्रैल को पुणे के एक मॉल में लाएगी, जहां माता-पिता और बच्चे चार घंटे एक साथ समय बिताएंगे।
इसके बाद बच्चे अपने पिता की कस्टडी में रहेंगे, जो 17 अप्रैल को सुबह 11 बजे उन्हें उसी मॉल में वापस लाएंगे। फिर चार घंटे एक साथ समय बिताने के बाद बच्चों को उसी दिन तीन बजे प्रतिवादी मां को कस्टडी सौंप देंगे। अदालत ने कहा कि वह 21 अप्रैल को अगली सुनवाई के दौरान अंतरिम पहुंच व्यवस्था के मुद्दे पर फैसला करेगी।
MDO टेक
– पूरे आदेश में इस्तेमाल किया गया शब्द ‘पत्नी ने अनुमति नहीं दी’ है।
– यह स्थिति तब है जब सभी कानून महिला के पक्ष में है और पुरुषों/पिता को कठपुतली के रूप में अदालतों के सामने केवल अपने बच्चों को देखने के लिए भीख मांगने तक सीमित कर दिया जाता है।
– महिला ने मार्च 2022 के उस आदेश का उल्लंघन किया था जिसमें उसे बच्चों को पिता से मिलवाने का निर्देश दिया गया था, फिर भी उसकी अवज्ञा के बावजूद, कोई असर नहीं हुआ।
– हमें यकीन नहीं है कि अदालत द्वारा दिए गए 4Days-3Nights पैकेज में पिता अभी भी अपने बच्चों के साथ सामान्य संबंध रख सकता है या नहीं।
– अपने बच्चों को एक सामान्य परवरिश देने के लिए केवल माता-पिता दोनों पर ही निर्भर है।
– यदि माता-पिता में से कोई भी अपने अहंकार की सवारी पर है, तो वे केवल बच्चों के हित को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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