बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ क्रूरता के लिए दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करते हुए कहा कि प्रतिष्ठा का अधिकार और सम्मान का अधिकार भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(2) और 21 में एकीकृत हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सम्मान का अधिकार आर्टिकल 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) और 19(2) (अभिव्यक्ति और आंदोलन की स्वतंत्रता का अपवाद) संविधान का एक अभिन्न अंग है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के जलगांव जिले में दर्ज एक FIR को रद्द कर दिया। एक अलग रह रही महिला के पति की विवाहित बहन के खिलाफ क्रूरता के आरोप से संबंधित मजिस्ट्रेट अदालत की कार्यवाही को रद्द कर दिया। विवाहित बहन न्यायिक अधिकारी के रूप में भी काम करती है।
यह मामला एक पुरुष और महिला का है, जिनकी शादी 19 अप्रैल, 2019 को हुई थी। लेकिन महिला ने 7 जून, 2019 को ससुराल छोड़ दिया। महिला ने 12 नवंबर, 2019 को अपने पति, उसके माता-पिता और उसकी विवाहित बहन के खिलाफ FIR दर्ज कराई और आरोप लगाया कि उन्होंने उसके साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता की।
शादीशुदा बहन पर आरोप था कि उसने 18 मई को अपने भाई के लिए चिकन बिरयानी का ऑर्डर दिया था लेकिन उसकी पत्नी से कहा कि वह अपना खाना खुद बनाए। साथ ही जब पत्नी विवाहित बहन से मिलने गई तो उसे एक अनुपयोगी शौचालय में तैयार होने को कहा।
अलग रह रही पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि विवाहित बहन ने उससे कहा था कि वह अपने माता-पिता के खिलाफ आवाज न उठाए। अलग रह रही पत्नी ने बहन पर अपने भाई को नई लड़की खोजने पर बधाई देने और अतीत को भूलने के लिए उकसाने के लिए व्हाट्सएप स्टेटस डालने का भी आरोप लगाया।
कोर्ट का आदेश
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और आरएम जोशी की बेंच ने इस मामले को खारिज करते हुए बार्ड का भी हवाला दिया। पीठ ने इन आरोपों को देखा और कहा कि आरोप भले ही अंकित मूल्य पर लगाया गया हो और उनकी संपूर्णता में स्वीकार किया गया हो, लेकिन विवाहित बहन के खिलाफ जांच को न्यायोचित ठहराने वाला कोई अपराध नहीं है।
पीठ ने अंत में कहा कि निराधार आपराधिक आरोप और लंबे समय तक चलने वाले आपराधिक मुकदमे के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस तरह के मुकदमे के अधीन एक व्यक्ति को अत्यधिक मानसिक आघात, अपमान और मौद्रिक नुकसान होता है। लापरवाही से आरोप लगाने से करियर की प्रगति और भविष्य की खोज पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
कोर्ट ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक प्रतिष्ठा को कलंकित करता है, बदनामी लाता है और दोस्तों, परिवार और सहकर्मियों के बीच एक व्यक्ति की छवि को कम करता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चरित्र की हानि या चोटिल प्रतिष्ठा को न्यायिक राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता है।
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