पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana high court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा कि बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला के बयान पर पहले से ही ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि, सभ्य समाज में किसी को भी झूठा फंसाया या दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
क्या है मामला?
शिकायतकर्ता महिला के अनुसार, वह 9 अगस्त, 2017 को आरोपी से मिली और अपने परिवार की अनुमति से उससे सगाई कर ली। भारतीय सेना में काम करने वाला आरोपी कथित तौर पर उसे अपनी बाइक पर बीकेडी स्कूल के पास कोसली, दौराोली रोड ले गया जहां उसने अश्लील हरकतें कीं।
महिला ने शादी से पहले आरोपी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था। हालांकि, उसने आरोप लगाया कि वह आदमी नाराज हो गया और उसे जान से मारने की धमकी दी। कथित यौन उत्पीड़न शिकायतकर्ता की सगाई के बाद हुआ था।
इसके बाद, सितंबर 2017 में उसने रेवाड़ी के कोसली पुलिस स्टेशन में शख्स के खिलाफ बलात्कार, छेड़छाड़ और संबंधित आरोपों के तहत FIR दर्ज करा दी। बाद में, आरोपी व्यक्ति को यौन उत्पीड़न का प्रयास करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
ट्रायल कोर्ट, रेवाड़ी
सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी और आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया गया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि अभियोजन उचित संदेह से परे उसके अपराध को साबित करने में विफल रहा। आदेशों से क्षुब्ध होकर शिकायतकर्ता ने 1 मई 2019 के रेवाड़ी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट
जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस जगमोहन बंसल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोक्ता के बयान को सुसमाचार सत्य (Gospel Truth) नहीं माना जा सकता है और अदालत को यह देखना होगा कि वह उत्कृष्ट गुणवत्ता की गवाह है।
यदि कथन को सुसमाचार सत्य माना जाता है और अदालतें किसी को दोषी ठहराने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि अभियोजन पक्ष द्वारा आरोप लगाया गया है, तो यह न्याय का उपहास होगा और मुकदमा चलाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
हाई कोर्ट ने आगे जोड़ते हुए कहा कि कथित घटना का स्थान एक सार्वजनिक स्थान और एक अस्पताल, पुलिस स्टेशन और एक व्यस्त सड़क के बगल में है। यह विश्वास करना कठिन है कि सेना के लिए काम करने वाला व्यक्ति पहली बार मिलने के बाद सगाई के दिन सार्वजनिक स्थान पर और अपनी मंगेतर के साथ एक कथित कार्य करेगा।
इसके साथ ही महिला की अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष तर्कपूर्ण थे और पीड़िता के आरोपों में कोई दम नहीं था। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या झूठा आरोप लगाने वाली महिला के खिलाफ भी कोई कार्रवाई होगी?
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