राजस्थान हाईकोर्ट ( Rajasthan High Court) की जोधपुर बेंच ने एक फैसले के दौरान माना कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा कंपैशनेट अपॉइंटमेंट (Compassionate Appointment) पाने के लिए योग्य है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस कुलदीप माथुर की पीठ ने मुकेश कुमार बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 205 (Mukesh Kumar vs Union of India 2022 LiveLaw (SC) 205) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया है कि कंपैशनेट अपॉइंटमेंट पॉलिसी मृतक कर्मचारी के बच्चों को वैध और नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके केवल वंश के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने हेमेंद्र पुरी द्वारा दायर एक इंट्रा-कोर्ट अपील पर विचार करते हुए उक्त टिप्पणी की। इस अपील में सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के दिवंगत पिता के स्थान पर जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में कंपैशनेट अपॉइंटमेंट की मांग करने वाली उसकी रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था। अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु दिसंबर 2004 में जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के साथ ‘तबला वादक’ के रूप में काम करने के दौरान हुई थी। अपीलकर्ता और प्रतिवादी संख्या-4 (मृतक की दूसरी पत्नी के माध्यम से पैदा हुआ बच्चा) ने कंपैशनेट के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था।
प्रतिवादी का तर्क
प्रतिवादी यूनिवर्सिटी ने राजस्थान के मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति नियम, 1996 और अगस्त 2005 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए दोनों आवेदनों पर विचार किया और प्रतिवादी संख्या-4 के पक्ष में कंपैशनेट अपॉइंटमेंट का निर्णय दे दिया। इससे व्यथित होकर अपीलार्थी ने एक रिट याचिका दायर की, जिसे अप्रैल 2018 में खारिज कर दिया गया। इसलिए, विशेष अपील यह तर्क देते हुए दायर की गई थी कि मृतक कर्मचारी की प्रतिवादी संख्या-4 की मां के साथ दूसरी शादी संदिग्ध थी और इसलिए, कंपैशनेट अपॉइंटमेंट उसे नहीं दी जा सकती थी।
यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता मृतक कर्मचारी के स्थान पर कंपैशनेट अपॉइंटमेंट के लिए पूरी तरह से योग्य और हकदार था। हालांकि, कंपैशनेट अपॉइंटमेंट का दावा करने के उसके अधिकार को अवैध रूप से अनदेखा करते हुए, प्रतिवादी संख्या- 4 को नियुक्त कर दिया गया।
हाई कोर्ट का फैसला
शुरुआत में, कोर्ट ने मुकेश कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कंपैशनेट अपॉइंटमेंट की पॉलिसी, जिसमें कानून का बल है, को आर्टिकल 16(2) में उल्लिखित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए, जिसमें वंश भी शामिल है। इसके अलावा, कोर्ट ने राजस्थान के मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति नियम, 1996 पर भी ध्यान दिया, यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि प्रतिवादी संख्या-4 द्वारा कंपैशनेट अपॉइंटमेंट के लिए प्रस्तुत आवेदन को केवल इस आधार पर प्रतिवादी यूनिवर्सिटी द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता था कि वह दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा है।
कोर्ट ने सिंगल जज के आदेश को बरकरार रखते हुए आगे कहा कि, ”1996 के नियमों के नियम 10(2) के अनुसार यदि एक से अधिक आश्रित कंपैशनेट के आधार पर रोजगार का दावा करते हैं तो विभागाध्यक्ष परिवार के समग्र हित और कल्याण को ध्यान में रखते हुए कंपैशनेट अपॉइंटमेंट के आवेदनों का निर्णय करने के लिए सक्षम है। कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमारा दृढ़ मत है कि सक्षम प्राधिकारी अर्थात विभागाध्यक्ष ने प्रस्तुत किए गए आवेदन को 1996 के नियमों के अनुरूप मानकर सही किया था और उसके पक्ष में नियुक्ति का प्रस्ताव जारी किया था। इसके साथ ही विशेष अपील योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दी गई।
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