भारत में विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के केवल एक बयान की दया पर क्यों निर्भर हैं? अंतहीन तुच्छ मामलों के बोझ तले दबी हमारी धीमी न्यायिक व्यवस्था को धन्यवाद, जिसकी वजह से खुद को निर्दोष साबित करने में अक्सर लोगों को सालों और दशकों लग जाते हैं। मुंबई (Mumbai) से सामने आए एक मामले में एक मजिस्ट्रेट अदालत ने 9 साल के लंबे मुकदमे के बाद एक व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज घरेलू हिंसा के आरोपों को खारिज कर दिया है। इस दौरान पति और उसका परिवार जमानत पर बाहर थे।
क्या है पूरा मामला?
35 वर्षीय व्यक्ति और उसके माता-पिता (जो ग्रांट रोड पर रहते हैं) पर उस शख्स की पत्नी ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था। पत्नी ने दावा किया था कि उसने एक चलती ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया, जिसमें उसने अपना दाहिना हाथ खो दिया। हालांकि, डॉक्टरों के बयान और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अनुसार, वह एक दुर्घटना थी, न कि आत्महत्या का प्रयास…।
पत्नी का आरोप
महिला ने जुलाई 2013 में IPC की धारा 498-A के तहत अदालत का रुख किया था, जहां उसने आरोप लगाया था कि उसके पति का परिवार उसे शारीरिक और मौखिक रूप से प्रताड़ित किया। उसने आगे आरोप लगाया कि उसके माता-पिता से पैसे लेने के लिए उसे परेशान किया गया। मुकदमे के दौरान महिला, उसके माता-पिता, भाई-बहन, एक डॉक्टर और पुलिस सहित 14 गवाहों ने गवाही दी थी। आरोपी तिकड़ी 9 साल से जमानत पर बाहर है। हालांकि, कोर्ट ने 2022 में कहा कि उनके खिलाफ अपराध साबित नहीं हुए।
मजिस्ट्रेट कोर्ट, मुंबई
रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच करने पर एक मजिस्ट्रेट अदालत ने पाया कि पत्नी का वास्तव में एक्सीडेंट हो गया था। अदालत ने इस बयान पर भरोसा किया कि महिला ने घटना के तुरंत बाद डॉक्टर को सूचना दी थी, जिससे पता चलता है कि यह एक दुर्घटना थी। कोर्ट ने कहा कि यह आत्महत्या का प्रयास नहीं था।
कोर्ट ने आगे कहा कि इससे अभियोजन पक्ष के मामले को स्पष्ट झटका लगता है कि मुखबिर (महिला) ने आत्महत्या करने का प्रयास किया है। इसलिए, आरोपी द्वारा किया गया बचाव एक बार में संभावित लगता है। यहां तक कि डॉक्टर ने भी इस संभावना को स्वीकार किया है कि महिला को लगी चोटें रेल दुर्घटना में संभव हैं।
ससुर द्वारा कोई यौन उत्पीड़न नहीं किया गया
अदालत ने महिला के इन आरोपों को भी खारिज कर दिया जब वह गेटवे ऑफ इंडिया पर गई तो उसके ससुर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसका यौन उत्पीड़न किया। अदालत ने कहा कि वह केवल अपने बेटे और उसके (बहू) के बीच अलग हुए संबंधों के बारे में पूछताछ कर रहा था। इस पर, कोर्ट ने नोट किया कि उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे इधर-उधर घुमाना और परिवार के मुखिया की हैसियत से उसके पति के साथ उसके संबंधों के बारे में पूछना कभी भी उसके और उसके पति के बीच विवादों के इतिहास में उसकी लज्जा को भंग करने के समान नहीं होगा।
अदालत ने आगे कहा कि यदि वह ऐसा करने का इरादा रखता तो वह किसी भी स्तर पर जा सकता था, जो स्पष्ट रूप से उसकी शील भंग करने के इरादे को दिखा सकता था। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इसका कारण यह है कि मुखबिर (महिला) ग्रेजुएट तक शिक्षित है, लेकिन वह यह नहीं बता पा रही है कि उसके ससुराल वाले और पति ने उसके साथ किस प्रकार का दुर्व्यवहार या परेशान किया है।
कोर्ट ने सुनवाई के आखिर में कहा कि उत्पीड़न के संबंध में या दहेज की मांग और क्रूरता की घटनाओं के संबंध में कोई विशेष आरोप नहीं हैं। इसलिए मुखबिर के साक्ष्य को भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A (क्रूरता) के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त की दोषसिद्धि का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
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