पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने हाल ही में एक पति द्वारा दायर अपील का निपटारा करते हुए तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी-पत्नी द्वारा पोलियो पीड़ित दिव्यांग पति की शारीरिक अक्षमता को ताना मारना, उसकी बैसाखी छीनना, उसके साथ मारपीट करना और उसे इधर-उधर फेंकना शारीरिक एवं मानसिक दोनों तरह की क्रूरता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह क्रूरता का सबसे अमानवीय प्रकार है।
क्या है पूरा मामला?
लीगल वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अपीलकर्ता-पति द्वारा अतिरिक्त जिला जज, होशियारपुर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई, जिसमें हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 के तहत ‘क्रूरता’ और ‘त्याग’ के आधार पर तलाक की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
पति का आरोप
अपीलकर्ता पति का आरोप था कि वह दिव्यांग है। बचपन से ही पोलियो से पीड़ित है। प्रतिवादी-पत्नी के साथ शादी के तुरंत बाद उसने उसकी शारीरिक अक्षमता के लिए उसका सार्वजनिक रूप से अपमान करना और मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद पत्नी ने उसके परिवार और दोस्तों के सामने उसे ताना मारकर ‘लुलालंगरा’ कहना शुरू कर दिया। उसके साथ मारपीट और उसे इधर-उधर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे उसे भारी आघात लगा। इतना ही नहीं उसने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना बंद कर दिया और उसे अपने माता-पिता की संपत्ति से भी वंचित कर दिया गया।
कपल के अलग रहने के बाद पत्नी ने उसकी मर्दानगी के बारे में उसे ताना मारना जारी रखा। एक दिन उसने उसकी बैसाखी छीन ली और अपीलकर्ता को उसके दोस्तों-रिश्तेदारों की मौजूदगी में जमीन पर फेंक दिया, जिस वजह से उसे मानसिक पीड़ा और आघात के साथ-साथ शारीरिक प्रतिवादी के हाथों दुर्व्यवहार सहना पड़ा। अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उसकी पत्नी ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी। इसके अलावा, अपीलकर्ता ने गवाहों के माध्यम से सबूत पेश किए, जिन्होंने अपीलकर्ता के प्रति प्रतिवादी के बुरे व्यवहार की गवाही दी।
पत्नी का तर्क
दूसरी ओर प्रतिवादी पत्नी ने पति द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। पत्नी ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता-पति ने उससे दहेज की मांग की। उसने तर्क दिया कि उसके माता-पिता ने उसकी शादी पर बहुत पैसा खर्च किया था। अपीलकर्ता और उसके परिवार को गिफ्ट और दहेज के रूप में पैसे दिए थे। इसके बावजूद वे उसके साथ बुरा व्यवहार करते थे। उसने तर्क दिया कि जब वह गर्भवती थी तो उसे अपीलकर्ता द्वारा वैवाहिक घर से बाहर कर दिया गया। बच्चे के जन्म पर कोई भी नवजात बच्चे के जन्म के बारे में सूचना भेजने के बावजूद नवजात बच्चे को देखने नहीं आया।
हाई कोर्ट का आदेश
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने और सबूतों की पड़ताल करने के बाद कहा कि प्रतिवादी पत्नी ने अपीलकर्ता पति पर ‘मानसिक’ और ‘शारीरिक’ दोनों तरह की क्रूरता की है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसकी दिव्यांगता के लिए ताना मारना और जब वह असहाय हो और अपनी रक्षा करने में असमर्थ हो तो उसे जमीन पर फेंकने के लिए धक्का देना, सबसे अमानवीय प्रकार की क्रूरता है, जो किसी भी दिव्यांग व्यक्ति के साथ की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी की ऐसी हरकतें उसके द्वारा अपीलकर्ता पर शारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों का आरोप लगाया गया। तदनुसार, इस संबंध में एडीजे, होशियारपुर के एडीजे के निष्कर्षों को गलत और रिकॉर्ड पर साक्ष्य के विपरीत माना जाता है। इस तरह उलट दिया जाता है।
एडीजे, होशियारपुर के आदेश को पलटते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने कई गवाहों की गवाही पर चुप रहकर गलती की, जिन्होंने प्रतिवादी के दुर्व्यवहार की गवाही दी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अपीलकर्ता की दलीलों को केवल इसलिए खारिज करना, क्योंकि वह क्रूरता के ऐसे कृत्यों की सही तारीख और समय नहीं याद है, गलत है। कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक का फैसला सुनाया।
गुजारा-भत्ता
कोर्ट ने कहा कि हालांकि हमने माना कि प्रतिवादी-पत्नी के कृत्य अपीलकर्ता-पति के खिलाफ क्रूरता के बराबर हैं। हालांकि, हम उसकी आवश्यकताओं और पक्षकारों के विवाह से पैदा हुए बेटे से बेखबर नहीं हैं। इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि पति पत्नी को एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 15,00,000 रुपये की राशि का भुगतान करेगा और वह बाद के किसी भी चरण में किसी और राशि का दावा नहीं करेगी।
हाई कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा 10,00,000 रुपये उनके बेटे नवजोत को भुगतान किया जाएगा। यह राशि आज से 6 माह के भीतर भुगतान की जाएगी। हाई कोर्ट ने अपर जिला जज, होशियारपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 21.04.2010 को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आखिरी में कहा कि धारा 13 के तहत पति द्वारा दायर तलाक को डिक्री किया जाता है और 3 मार्च 2004 को हुए पक्षकारों के विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा भंग किया जाता है।
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.