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Home हिंदी कानून क्या कहता है

अलग रह रही पत्नी ने पति के बॉस को पत्र लिखकर लगाए बेबुनियाद आरोप, 12 साल बाद हाई कोर्ट ने दी तलाक की मंजूरी

Team VFMI by Team VFMI
December 15, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Woman cant file cheating case against matchmaker if marriage fails: Bombay High Court

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भारत में विवादित तलाक (Contested Divorce in India) की प्रक्रिया बेहद दर्दनाक हो सकती है और विशेष रूप से यदि आप एक पुरुष हैं, तो माननीय भारतीय अदालतों द्वारा मामले को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में कम से कम एक दशक या उससे अधिक का समय लग सकता है। जी हां, जून 2020 में बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने नवी मुंबई निवासी 47 वर्षीय एक व्यक्ति को इस आधार पर तलाक दे दिया था कि उसकी अलग रह रही पत्नी ने उसके बॉस यानी नियोक्ता (Employer) को एक पत्र लिखा था, जिसमें उसके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए गए थे। जिससे वह मानसिक रूप से बीमार हो गया था।

क्या है पूरा मामला?

कपल ने मई 1993 में शादी की थी और उनके दो बेटे हैं। मई 2006 में उनके रिश्ते में खटास आ गई, जब पत्नी दोनों बेटों के साथ अचानक मायके चली गई। हालांकि. सुलह के कई प्रयास किए गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। जून 2008 में कपल के वैवाहिक संबंध पूरी तरह से टूट गए, जब महिला लगभग चार दिनों के लिए फिर से अपने मायके चली गई और अघोषित रूप से अपने घर वापस आ गई। यह तब की बात है जब उसने अपने पति के मालिक को पत्र लिखा था, जिसमें शख्स पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का आरोप लगाया गया था।

कुछ दिनों बाद, पति ने नागपुर में फैमिली कोर्ट का रुख किया, जहां मई 1993 में उनकी शादी के रजिस्ट्रेशन की गई थी। बाद में, फैमिली कोर्ट द्वारा मार्च 2012 में उनकी तलाक की याचिका खारिज करने के बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया।

हाई कोर्ट

जस्टिस वीएम देशपांडे और जस्टिस एसएम मोदक की दो सदस्यीय खंडपीठ ने स्वीकार किया कि पत्नी द्वारा पति के नियोक्ता को पत्र लिखना “हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 (1) (i-a) के तहत क्रूरता थी। इस आधार पर हाई कोर्ट ने शख्स को तलाक दे दिया।

हाई कोर्ट ने उनके इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि महिला का अपने नियोक्ता को पत्र लिखने का आचरण और निराधार आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है और यह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुरूप है, और वह उस आधार पर तलाक का हकदार था।

हाई कोर्ट ने कहा कि विश्वास एक विवाह की नींव हैं और यदि पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर स्थापित करते हैं, तो इसे नींव को नुकसान पहुंचाने वाला कार्य माना जाता है। बेंच ने आगे कहा कि और, यदि पति-पत्नी में से कोई एक इस तरह के आरोप लगाता है और वह इसे साबित करने में विफल रहता है, तो इसे दूसरे पति या पत्नी को मानसिक पीड़ा देने वाला कृत्य और क्रूरता का उदाहरण माना जाता है।

अदालत ने आगे कहा कि निराधार और बेबुनियाद आरोप, विशेष रूप से पति या पत्नी के चरित्र के बारे में, मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक के आधार के रूप में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है। पीठ ने कहा कि हालांकि, पति द्वारा अपनी अलग रह रही पत्नी के खिलाफ क्रूरता और परित्याग जैसे अन्य आरोपों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

12 साल के संघर्ष के बाद मिली तलाक की मंजूरी

जहां पुरुष को आखिरकार हाई कोर्ट से राहत मिल गई है, वहीं महिला के पास अब भी सुप्रीम कोर्ट में मामला लड़ने का मौका है। शख्स ने 35 साल की उम्र में तलाक के लिए अर्जी दी थी। इसलिए 12 साल बाद हाई कोर्ट द्वारा दिया गया तलाक किसी भी इंसान के लिए वास्तविक न्याय मिलने के संकेत नहीं है।

Wife’s Letter To Husband’s Employer With Wild Allegations Is Cruelty | Divorce Granted After 12-Years

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