कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने बेलगावी पोक्सो अदालत (Belagavi POCSO court) द्वारा रेप के आरोपी पिता के बरी करने के आदेश को रद्द कर दिया और उसे 50,000 रुपये के जुमार्ने के साथ 10 साल कैद की सजा सुनाई।
क्या है पूरा मामला?
एक शख्स पर आरोप है कि उसने 2015 में लगातार अपनी 14 वर्षीय बेटी का यौन शोषण किया और उसे नजरबंद कर रखा था। लड़की ने इस बारे में तब खुलासा किया जब वह अपने दादा-दादी के घर आई थी। उसने अपनी आपबीती दादी को बताई थी और अपने घर वापस जाने से इनकार कर दिया था।
इस संबंध में दादी ने बेलगावी थाने में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, पॉक्सो अदालत ने 3 फरवरी, 2017 को आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि पीड़िता, उसकी दादी और अन्य गवाहों के बयान अविश्वसनीय हैं। अभियोजन पक्ष ने हाई कोर्ट में बरी किए जाने पर सवाल उठाया था।
कर्नाटक हाई कोर्ट
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, कर्नाटक हाईकोर्ट ने पीड़िता के प्रति निचली अदालत के पक्षपातपूर्ण रवैये की निंदा की है। जस्टिस एच.टी. नरेंद्र प्रसाद और जस्टिस राजेंद्र बादामीकर ने बुधवार को फैसला सुनाया। अभियोजन पक्ष ने विशेष पॉक्सो अदालत द्वारा आरोपी को बरी करने के आदेश पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
पीठ ने पाया है कि पॉक्सो अदालत उस आघात पर विचार करने में विफल रही है जो नाबालिग लड़की को यौन उत्पीड़न के कारण हुआ है। कोर्ट ने आगे उल्लेख किया कि निचली अदालत ने मामले को पक्षपाती मानसिकता के साथ देखा है, जहां बेटी का पिता द्वारा रेप किया गया था।
हाई कोर्ट ने कहा कि लड़की द्वारा अपने पिता के खिलाफ झूठे बयान देने का कोई कारण नहीं है। ऐसे मामलों में जहां पीड़ित के साक्ष्य विचारशील और विश्वसनीय हैं, अदालतों को समझदार होना चाहिए। निचली अदालत की कार्यवाही दागदार और अजीबोगरीब रही है जो स्वीकार्य नहीं है।
पीठ ने आरोपी पिता की ओर से पेश वकील की याचिका पर विचार नहीं किया कि वह एक ऑटो चालक है और उसके परिवार के सदस्य आजीविका के लिए उस पर निर्भर हैं। कोर्ट ने कहा कि सजा कम करने का कोई कारण नहीं है।
MDO टेक
– ऐसे मामले पेचीदा होते हैं जहां अदालतों की सहानुभूति मुख्य रूप से नाबालिग पीड़ित के साथ होती है।
– यहां यह सवाल बना रहता है कि क्या ट्रायल कोर्ट ने ट्रायल करने के बाद व्यक्ति को पूरी तरह से तथ्यों के आधार पर बरी करने में गलती की है, या क्या हाई कोर्ट ने सबूतों के बावजूद पीड़ित की बात को ज्यादा महत्व दिया है?
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