दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने पिछले सप्ताह एक मामले की सुनवाई के दौरान मध्यस्थता केंद्रों द्वारा विवाह विवाद समझौते को मसौदा प्रिंटेड प्रोफार्मा में तैयार करने पर गंभीर आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि समझौते ज्ञापन पर दिमाग का इस्तेमाल दिखना चाहिए। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता केंद्रों और परिवार अदालतों को सुनिश्चित करना चाहिए कि समझौता ज्ञापन का मसौदा अच्छी तरह से तैयार किया जाए न कि प्रिंटेड प्रोफार्मा पर।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट में आए मामले के मुताबिक, कपल ने 2015 में शादी की थी और एक साल के भीतर उनके बीच कुछ मतभेद पैदा हो गए जिसके बाद वे अलग रहने लगे। फिलहाल, दोनों का यह अब हाई कोर्ट के समक्ष है।
हाई कोर्ट
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि यह अदालत वैवाहिक संबंधों को रद्द करने की याचिकाओं पर सुनवाई करते समय अक्सर मध्यस्थता केंद्रों द्वारा तैयार किए जा रहे निपटान समझौतों का सामना करती है जो एक प्रिंटेड प्रोफार्मा पर होते हैं। यह अदालत इस पर गंभीर आपत्ति जताती है।”
हाई कोर्ट के निर्देश एक वैवाहिक विवाद मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द करते हुए आए क्योंकि पक्षकारों ने पहले ही तलाक का आदेश प्राप्त कर लिया था और मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया था।
पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस शर्मा ने आगे कहा, “मेरा मानना है कि मुकदमे को जारी रखने का कोई उद्देश्य नहीं होगा, क्योंकि पक्षकरों ने बिना किसी भय, बल और दबाव के स्वेच्छा से समझौता किया है और मामले को समाप्त करने का फैसला किया है। यह एक वैवाहिक विवाद था जिसे सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और इस प्रकार पक्षों को अपने जीवन में आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए।”
हाई कोर्ट ने कहा कि प्रिंटेड प्रोफार्मा पर निपटान से कभी-कभी यह आभास होता है कि इसमें दिमाग का कोई उपयोग नहीं किया गया है और निपटान विलेख का मसौदा यांत्रिक रूप से तैयार किया गया है। अदालत ने कहा कि इसलिए, मध्यस्थता केंद्रों और पारिवारिक अदालतों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि निपटान कार्यों का मसौदा ठीक से तैयार किया जाए।
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