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Home हिंदी कानून क्या कहता है

दिल्ली HC ने झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों में खतरनाक वृद्धि पर चिंता जताते हुए याचिकाकर्ताओं पर लगाया 50,000 रुपये का जुर्माना, जानें क्या है पूरा मामला

Team VFMI by Team VFMI
February 17, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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mensdayout.com

READ ORDER | Delhi High Court Fines Rs 50,000 Each As Both Parties Filed False Sexual Harassment Charges Only To Arm Twist Other (Representation Image Only)

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों में खतरनाक वृद्धि पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि इसे केवल अभियुक्तों को दबाव में लाने और शिकायतकर्ता की मांगों के आगे घुटने टेकने को मजबूर करने के लिए दायर किया जाता है।

बता दें कि यह पहली या आखिरी बार नहीं है जब दिल्ली हाई कोर्ट ने झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों पर ऐसी टिप्पणी की है। इससे पहले झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों पर एक सुनवाई के दौरान इसे “आयरन हैंड” (iron hand) करार दिया था।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद (Justice Subramonium Prasad) ने कहा कि यह कोर्ट इस बात से दुखी है कि धारा 354, 354A, 354B, 354C और 354D के तहत मामलों में खतरनाक वृद्धि हो रही है, ताकि आरोपी को केवल शिकायतकर्ता की मांगों के आगे झुकने के लिए मजबूर किया जा सके।

क्या है पूरा मामला?

अदालत दो याचिकाओं पर विचार कर रही थी जिसमें दीवानी प्रकृति के विवाद से उत्पन्न FIR को रद्द करने की मांग की गई थी। यद्यपि एक एफआईआर आईपीसी की धारा 354, 323 और 509 के तहत दर्ज की गई थी, जबकि दूसरी एफआईआर आईपीसी की धारा 354, 323, 506 और 509 पर आधारित थी। ऐसा कहा गया था कि दोनों पक्ष आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे और किसी गलतफहमी के कारण वाहन की पार्किंग को लेकर झगड़ा हो गया, जिसमें दोनों पक्षों के परिवार के सदस्य शामिल हो गए।

हालांकि, यह दलील दी गई थी कि आम पारिवारिक मित्रों और इलाके के सम्मानित व्यक्तियों के हस्तक्षेप से दोनों पक्षों ने एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया था। सुनवाई के दौरान, पार्टियों ने वचन दिया था कि वे उनके बीच हुए समझौते की शर्तों से बंधे रहेंगे।

दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने पार्टियों द्वारा दायर FIR को इस तथ्य के मद्देनजर खारिज कर दिया कि पक्षकारों द्वारा दोनों तरफ से शिकायतें दर्ज की गई थीं। शिकायतकर्ता परिवार के ही सदस्य हैं और एक-दूसरे से बहुत ही निकटता से जुड़े हैं, जिन्होंने बाद में आपसी समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों से ‘ज्ञान सिंह बनाम पंजाब सरकार’ (Gian Singh vs. State of Punjab) मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कानून के तहत निपटा गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि, पुलिस को अपराधों की जांच में बहुमूल्य समय देना पड़ा और याचिकाकर्ताओं द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही में कोर्ट द्वारा काफी समय बिताया गया है, इसलिए यह कोर्ट याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाने के पक्ष में है।

इसलिए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को तीन सप्ताह की अवधि के भीतर “सशस्त्र सेना युद्ध हताहत कल्याण कोष” (Armed Forces Battle Casualties Welfare Fund) में 50,000 रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दिया और इसके साथ ही याचिकाओं का निस्तारण कर दिया गया।

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