दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में अपनी रजिस्ट्री को राष्ट्रीय राजधानी में फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाने वाले व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल किए गए लिखित बयान में जज पर लगाया गया आरोप प्रथम दृष्टया आपराधिक मानहानि में आता है। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि रजिस्ट्री को याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज करने और माननीय चीफ जस्टिस के आदेशों के अधीन, इसे इस अदालत की उचित डिवीजन बेंच के समक्ष रखने का निर्देश दिया जाता है।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस चावला प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, रोहिणी अदालतों से प्राप्त संदर्भ पर रजिस्टर्ड याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसके तहत जज ने अपने समक्ष लंबित वैवाहिक विवाद को सक्षम क्षेत्राधिकार के किसी अन्य न्यायालय में ट्रांसफर करने की मांग की। प्रिंसिपल जज ने कहा कि पति द्वारा दायर आवेदन “आक्रामक और असंयमित तरीके” से तैयार किया गया। इसलिए याचिका से हटने और ट्रांसफर की मांग की गई।
आरोपी शख्स को 1 सितंबर को खंडपीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश देते हुए अदालत ने प्रथम दृष्टया पाया कि पति को जजों को डराने-धमकाने के लिए उनके खिलाफ निंदनीय टिप्पणी करने की आदत है। पति कई अन्य अदालतों के खिलाफ बार-बार निंदनीय टिप्पणियां कर रहा था, जिससे जजों को मामलों को कुछ अन्य अदालतों में ट्रांसफर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हाई कोर्ट का आदेश
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उपरोक्त अनुक्रम और रिकॉर्ड से यह मेरा प्रथम दृष्टया विचार है कि याचिकाकर्ता को अदालतों के पीठासीन अधिकारियों को डराने-धमकाने के लिए उनके खिलाफ निंदनीय टिप्पणी करने की आदत है। आम तौर पर अदालतें ऐसी रणनीति के आगे झुक जाती हैं और मजबूर होती हैं, याचिकाकर्ता के मामलों को इस दुर्भावनापूर्ण अभियान में घसीटे जाने के बजाय किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर किया जाए।
जस्टिस चावला ने कहा कि पति ने 15 जुलाई को दायर अपनी लिखित दलील में जज के खिलाफ विभिन्न निंदनीय और आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। अदालत ने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर पेश होने वाले व्यक्ति के मामले से एक जज को सिर्फ इसलिए खुद को अलग नहीं करना चाहिए कि क्योंकि उसने उन पर निंदनीय आरोप लगाया है, बल्कि अदालत को ऐसा करने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि न्यायालय एवं कानून की गरिमा को बरकरार रखा जा सके।
जस्टिस चावला ने मामले को किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर करने के जज के अनुरोध को खारिज करते हुए कहा, “केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता, जो व्यक्तिगत रूप से पेश होता है, न्यायाधीश के खिलाफ निंदनीय टिप्पणी करता है, प्रिंसिपल जज को उसे मामलों से अलग करने की मांग नहीं करनी चाहिए। साथ ही इसे किसी अन्य जजों के पास ट्रांसफर करने की मांग नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, अदालत को याचिकाकर्ता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे अदालत और कानून की महिमा बरकरार रखी जा सके।”
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