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Home हिंदी कानून क्या कहता है

पार्टियों के बीच तलाक के बाद दिल्ली HC ने पति को पत्नी की पहली शादी से हुए नाबालिग बेटी को भरण-पोषण देने का दिया आदेश

Team VFMI by Team VFMI
March 12, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

PIL in Delhi High Court seeks mandatory FIRs against husbands accused of violence against wives instead of forcing mediation

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा कि शादीशुदा महिला से शादी करने वाले किसी व्यक्ति को बाद में यह तर्क देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि पत्नी के पहले पति से पैदा हुए बच्चे की उसकी जिम्मेदारी नहीं है।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबि, प्रतिवादी पत्नी की शादी पहले एक सैन्यकर्मी से हुई थी, जिससे उसे एक बेटी हुई। अपने पति की मृत्यु के बाद उसने इस मामले में अपीलार्थी-पति से दोबारा शादी की। जब तक पार्टियां एक साथ नहीं रहतीं, तब तक दूसरा पति बेटी के पालन-पोषण का खर्च उठाता रहा। हालांकि, जब दोनों के बीच अलगाव हुआ, तो पति ने पत्नी द्वारा छोड़े जाने के आधार पर तलाक के लिए अर्जी दी।

जहां बड़ी बेटी का जन्म पत्नी के सैन्यकर्मी के साथ पहली शादी से हुआ था, वहीं छोटी बेटी का जन्म याचिकाकर्ता के साथ विवाह से हुआ था। हाई कोर्ट ने उस पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अंतिम फैसले में संशोधन की मांग करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी से परित्याग के आधार पर तलाक दिया गया था।

फैमिली कोर्ट

फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पहले 5 साल के लिए दो बच्चों को 2,500 रुपये और अगले पांच सालों के लिए 3,500 रूपये देने का निर्देश दिया था। साथ ही दोनों बच्चों की शादी होने या आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक प्रत्येक को 5,000 रूपये देने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने इस आधार पर फैमिली कोर्ट के आदेश में संशोधन की मांग की कि सेना द्वारा जारी आदेश में बड़ी बेटी को आश्रित के रूप में दिखाया गया और वह अपनी पूर्व पत्नी के दिवंगत पहले पति के परिवार के सदस्य के रूप में दिखाई गई।

हाई कोर्ट

लाइव लॉ के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ  फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि सेना प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश में केवल तथ्य को मान्यता दी गई, जो याचिकाकर्ता के ज्ञान के भीतर है। अदालत ने पाया कि यह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 25 (2) के तहत आवश्यक परिस्थितियों में बदलाव नहीं करेगा। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की, “जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ विवाह करता है, जिसके पहले से ही बच्चा है तो यह माना जाएगा कि उस व्यक्ति ने बच्चे की जिम्मेदारी ली है और बाद में यह तर्क देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि बच्चा उसकी जिम्मेदारी नहीं है।”

अदालत ने कहा कि यह विवाद में नहीं है कि याचिकाकर्ता को पता है कि उसकी पत्नी की पहली बेटी उसकी पहली शादी से उस समय पैदा हुई, जब उसने उसके साथ विवाह किया। अदालत ने कहा कि अगर प्रतिवादी को पता होता कि अपीलकर्ता अपनी पहली बेटी का भरण-पोषण नहीं करने वाली है तो उसने उससे शादी भी नहीं की होती। यह विवाद में नहीं है कि अपीलकर्ता बड़ी बेटी को पाल रहा था और पक्षकारों के अलग होने तक उसका भरण-पोषण कर रहा था।

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि सेना के अधिकारियों द्वारा पत्नी की शादी से बड़ी बेटी को उसके दिवंगत पति के परिवार के सदस्य के रूप में दिखाने के आदेश का फैमिली कोर्ट के आदेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि याचिकाकर्ता को बेटी के अस्तित्व के बारे में पता था और अपनी जिम्मेदारी भी निभाई। अदालत ने कहा कि तदनुसार, हम फैमिली कोर्ट द्वारा लिए गए दृष्टिकोण में कोई कमी नहीं पाते कि अपीलकर्ता को आदेश में संशोधन करने का अधिकार देने वाली परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं आया है। नतीजतन, अपील खारिज की जाती है।

Delhi High Court Orders Man To Pay Maintenance For Wife’s Minor Daughter From First Marriage After Parties Have Divorced

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