दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले में शुक्रवार 28 अक्टूबर को महिला को प्राइवेट कंपनी को ऑडी Q7 कार वापस करने का निर्देश दिया। साथ ही यह फैसला सुनाया कि कॉर्पोरेट अधिकार एवं कर्त्तव्य में जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, भले ही वाहन उसी कंपनी का हो, जो उसके पति के स्वामित्व में है।
क्या है पूरा मामला?
लीगल वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला कोर्ट (Mahila Court) ने पिछले साल अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने के बाद महिला को कार अपने पास रखने की अनुमति दी थी, जो कंपनी में 75 फीसदी शेयरधारक है और उसे आधिकारिक उपयोग के लिए वाहन दिया गया है। जस्टिस सिंह ने रेडिकल आर्क वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर उपरोक्त फैसला सुनाया। लिमिटेड कंपनी है, जो निर्माण और अचल संपत्ति के कारोबार में लगी हुई है। कंपनी ऑडी Q7 वाहन की रजिस्टर्ड मालिक है।
कंपनी को वापस कर दी गई थी कार
रिपोर्ट के मुताबिक, लाइव लॉ के मुताबिक कार पिछले साल 2 जुलाई को इस्तीफे के समय कंपनी को वापस कर दी गई। हालांकि, महिला ने 19 जुलाई को कथित तौर पर कंपनी के कब्जे से कार ले ली। कंपनी की तरफ से कार चोरी को लेकर नोएडा के सेक्टर 49 थाने में शिकायत दर्ज कराई गई। उस समय कार में कंपनी के ग्राहकों की 24 संपत्तियों के मूल शीर्षक दस्तावेज थे। इसके बाद कंपनी को पता चला कि कार महिला के कब्जे में है और वह महिला कोर्ट के आदेश द्वारा सुरक्षित है।
MM कोर्ट का फैसला
पिछले साल 15 सितंबर को एमएम कोर्ट (MM Court) ने निर्देश दिया कि गुण-दोष के आधार पर सुनवाई होने तक ऑडी कार महिला के कब्जे में रहेगी। कंपनी द्वारा आदेश की समीक्षा के लिए दायर आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत समीक्षा की कोई शक्ति मौजूद नहीं है। अदालत ने यह भी नोट किया कि उस व्यक्ति ने 26 जुलाई, 2021 को आदेश पारित होने के बाद ही कंपनी से इस्तीफा दिया था।
दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने जुलाई में पति और पत्नी को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया और उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बयान दिया कि ऑडी कार उसकी पत्नी को वापस करनी चाहिए। इसके बजाय, वह उसे BMW कार देगा। हालांकि बाद में पति का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बयान से मुकर कर गया। कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि यह बिना किसी दोष के दंपति के हाथों पीड़ित है।
अदालत को यह भी बताया गया कि कुछ मूल संपत्ति के कागजात कार में पड़े हैं और व्यक्ति ने इस संबंध में कंपनी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की है। हालांकि, महिला का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने इसे छद्म मुकदमा बताया और अदालत से कहा कि अगर वह BMW कार देने के लिए सहमत है तो वह ऑडी वापस कर देगी। यह भी तर्क दिया गया कि उसने केवल अदालत के साथ शरारत करने और एमएम कोर्ट के आदेशों के लाभों से वंचित करने के लिए कंपनी से इस्तीफा दे दिया।
“महिला केवल अपने पति के खिलाफ ही शिकायत कर सकती है”
जस्टिस सिंह ने आदेश में इस तर्क को खारिज कर दिया कि कंपनी को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 29 के तहत अपील दायर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कंपनी उन कार्यवाही में न तो प्रतिवादी है और न ही पीड़ित व्यक्ति है। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत महिला केवल अपने पति के खिलाफ ही शिकायत कर सकती है।
अदालत ने कहा, “अधिनियम की धारा 19 और 22 प्रतिवादी नंबर दो (पत्नी) को निवास के अधिकार के साथ-साथ प्रतिवादी के खिलाफ मुआवजे और हर्जाने की राहत का अधिकार देती है, जिसे धारा 2 (Q) के तहत परिभाषित किया गया है। याचिकाकर्ता कंपनी उक्त परिभाषा के दायरे में नहीं आती है। कॉर्पोरेट पर्दा उठाना और यह धारण करना कि ऑडी कार भले ही याचिकाकर्ता कंपनी की है, लेकिन वास्तव में प्रतिवादी नंबर तीन (पति) की है, कानूनी रूप से मान्य नहीं होगी। कंपनी और उसके शेयरधारक और निदेशक अलग कानूनी संस्थाएं हैं।”
इस तर्क पर कि पति धोखाधड़ी से इस्तीफे की गलत तारीखें दिखा रहा है, अदालत ने कहा कि यह निर्णय के उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है, क्योंकि मामले में कार्यवाही को “धोखाधड़ी” वाक्यांश के दायरे में नहीं लाया जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी जोड़ा कि प्रतिवादी नंबर तीन (पति) का कार्य और आचरण धोखाधड़ी की उक्त परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता। प्रतिवादी नंबर तीन याचिकाकर्ता कंपनी से निदेशक के रूप में जब वह चाहे इस्तीफा देने का हकदार है। कानून उसे ऐसा करने के लिए अनुमति देता है।
कोर्ट ने कहा कि एक बार प्रतिवादी नंबर तीन ने कानूनी रूप से अनुमेय कार्य किया है, इसे किसी भी तरह से धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता। इसलिए यह घोषित करने की घोषणा नहीं की जा सकती कि उक्त ऑडी कार याचिकाकर्ता कंपनी की नहीं बल्कि प्रतिवादी नंबर तीन कंपनी की है। याचिका मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऑडी कार एक हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता कंपनी को वापस कर देना चाहिए।
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