दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने 12 अप्रैल, 2022 के अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक विवादों से संबंधित गैर-शमनीय अपराधों (Non-Compoundable Offences) के संबंध में भी FIR या शिकायतों को रद्द किया जा सकता है यदि न्यायालय संतुष्ट है कि पार्टियों ने बिना किसी दबाव के अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है। पत्नी द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की धारा 498A, 406 और 34 के तहत दर्ज FIR को खारिज करते हुए जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने यह टिप्पणी की।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह (Justice Chandra Dhari Singh) ने कहा कि वैवाहिक विवादों से संबंधित गैर-शमनीय अपराधों में भी यदि न्यायालय संतुष्ट है कि पार्टियों ने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से और बिना किसी दबाव के सुलझा लिया है, तो न्याय के उद्देश्य से अपराधों के संबंध में दर्ज FIR या शिकायत या उसके बाद की आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
– पार्टियों ने अप्रैल 2003 में शादी की थी लेकिन उनके बीच कुछ मनमौजी मतभेदों के कारण वे मई 2005 से अलग रहने लगे। दंपति की एक बेटी है, जो अब एक बालिग है।
– सुलह के कई प्रयासों के बावजूद, दोनों पक्ष मतभेदों को नहीं सुलझा सके।
– पत्नी ने 2006 में महिला सेल में दर्ज कराई शिकायत।
– इसके बाद पत्नी ने C.A.W. (Crime Against Women) में शिकायत दर्ज कराई।
– पार्टियां परस्पर समझौता करने के लिए सहमत हैं।
– परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के हस्तक्षेप से दोनों पक्षों ने मध्यस्थता केंद्र तीस हजारी कोर्ट के समक्ष समझौता किया।
– उक्त समझौते के अनुसरण में पक्ष हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिए चले गए। पति और पत्नी ने धारा 13B(1) के तहत तलाक की याचिका का अपना पहला प्रस्ताव दायर किया था, जिसे अगस्त 2021 में अनुमति दी गई थी।
– पार्टियों द्वारा HMA की धारा 13 B (2) के तहत आपराधिक मामलों को रद्द करने की याचिका दायर की गई थी और उनकी शादी को आपसी सहमति से दिसंबर 2021 के आदेश के तहत भंग कर दिया गया था।
समझौता
यह प्रस्तुत किया गया था कि पत्नी ने अपने दहेज आर्टिकल, स्त्रीधन, शादी के खर्च, आभूषण, उपहार की वस्तुओं और अतीत, वर्तमान और भविष्य के रखरखाव एवं पति और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ स्थायी गुजारा भत्ता के दावों के संबंध में अपने सभी दावों का निपटारा कर दिया था।
15,50,000 रुपये की कुल राशि
– 15,50,000 रुपये की कुल राशि में से 10,00,000 रुपये पहले ही भुगतान किए जा चुके थे, जबकि शेष 5,50,000 रुपये FIR रद्द करते समय भुगतान करने के लिए सहमत हुए थे।
– इसलिए यह प्रार्थना की गई कि FIR को समझौता ज्ञापन के आधार पर और ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार रद्द किया जाए।
– राज्य के विद्वान APP ने प्रस्तुत किया कि पक्षों के बीच हुए समझौते के मद्देनजर FIR को रद्द करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई प्रार्थना का कोई विरोध नहीं है।
दिल्ली हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने पक्षों के बीच समझौते को नोट किया और कहा कि गैर-शमनीय अपराधों के संबंध में तत्काल आपराधिक कार्यवाही प्रकृति में निजी है और समाज पर इसका गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता है। खासकर जब पीड़ित (पत्नी) और आरोपी (पति) के बीच समझौता/समझौता होता है।
ऐसे मामलों में यह तय किया गया कानून है कि हाई कोर्ट को भी अभियुक्त के आचरण और पूर्ववृत्त पर विचार करने की आवश्यकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि समझौता किया गया है। अपनी स्वतंत्र इच्छा से प्रवेश किया है और याचिकाकर्ता या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा उस पर नहीं लगाया गया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी की ओर से कोई आरोप नहीं लगाया गया है कि समझौता के बाद याचिकाकर्ताओं का आचरण और उनके प्रति उनके प्रति बुरा व्यवहार था और समझौते के अनुसार, उन्हें पूरी तय राशि प्राप्त हुई थी।
इस प्रकार पति के खिलाफ FIR रद्द करते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में जैसा कि ऊपर कहा गया है, पक्ष समझौते पर पहुंच गए हैं और बिना किसी दबाव के पूरे विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है। दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को देखते हुए वर्तमान याचिका की अनुमति दी जाती है।
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