दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पहले वैवाहिक मामलों में बलात्कार के आरोप लगाने और फिर बाद में इसे सुलझाने वाली प्रथा पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। लाइव लॉ के मुताबिक, इस टिप्पणी के साथ ही शिकायतकर्ता पत्नी पर कोर्ट ने 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के अनुसार, पत्नी ने अपने पति और ससुरालवालों पर रेप और दहेज उत्पीड़न सहित कई गंभीर आरोप लगाई थी। लेकिन पिछले साल नवंबर में दोनों पक्षों के बीच मामला सुलझ जाने के बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने FIR को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। पति अपनी पत्नी को पैसे देने को तैयार हो गया था। गुजारा भत्ता और रखरखाव के अपने सभी दावों के लिए शिकायतकर्ता पत्नी को 5 लाख और आपसी तलाक की प्रथम गति की कार्यवाही भी पूरी की गई। इसमें कहा गया था कि यदि याचिका स्वीकार की जाती है तो राज्य के वकील को कोई आपत्ति नहीं थी।
हाई कोर्ट
जस्टिस योगेश खन्ना ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 376 के तहत बलात्कार के गंभीर अपराध पर पति और यहां तक कि उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ वैवाहिक मुकदमे में शिकायतकर्ताओं द्वारा मामलों की जांच के दौरान “पूरे परिवार को बदनाम करने” के लिए दबाव डाला जा रहा है। अदालत ने कहा कि बाद में बलात्कार के आरोपों को पार्टियों के बीच वैवाहिक विवादों के निपटारे के साथ जोड़ा जा रहा है।
हाई कोर्ट ने पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ IPC की धारा 406, 498A, 506, 376 और 34 के तहत दर्ज FIR को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। इसके साथ ही अदालत ने महिला पर जुर्माना लगाते हुए कहा कि रोहिणी जिला न्यायालय बार एसोसिएशन के पास शिकायतकर्ता पत्नी को 10,000 रुपये जमा करने होंगे।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ताओं के इन कृत्यों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में पति के परिवार के सदस्यों को वैवाहिक विवाद के अलावा धारा 376 IPC के तहत गंभीर अपराध में शामिल करने से पहले समझदारी से सोचा जा सके। इस मामले के शिकायतकर्ता को कुछ शर्तें रखने की जरूरत है।
कोर्ट ने आगे कहा कि यह देखा गया है कि आईपीसी की धारा 376 के तहत शिकायतकर्ताओं द्वारा वैवाहिक सूची में मामलों की जांच के दौरान दबाव डाला जा रहा है और यहां तक कि पति के परिवार के सदस्यों को भी इसमें शामिल किया जा रहा है जिससे पूरे परिवार को बदनाम किया जा रहा है। लेकिन बाद में वैवाहिक विवादों के निपटारे के साथ आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपों का निपटारा किया जा रहा है।
जस्टिस खन्ना ने कहा कि एफआईआर को रद्द करने में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि शिकायतकर्ता ने सभी विवादों को सुलझा लिया था और पति और ससुराल वालों से आंशिक रूप से तय राशि भी प्राप्त कर ली थी।
अदालते ने अपने आदेश में आगे कहा कि दूसरी गति की कार्यवाही के समय प्रतिवादी नंबर 2 को 1.00 लाख रुपये की शेष राशि का भुगतान किया जाएगा। उपरोक्त के मद्देनजर, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि इससे याचिकाकर्ताओं को कभी भी दोषसिद्धि नहीं होगी।
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