सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 1 मई, 2023 को तलाक पर एक अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुके हों और सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने के वेटिंग पीरियड का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह शादी के अपरिवर्तनीय टूटने के मामलों में सहमति देने वाले पक्षों को तलाक की डिक्री देने के लिए आर्टिकल 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत निर्धारित छह महीने की अवधि को समाप्त किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-B के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक की मांग करने वाला पहला प्रस्ताव दाखिल करने के बाद, पक्षकारों को दूसरा प्रस्ताव पेश करने से पहले कम से कम छह महीने और अधिकतम 18 महीने तक इंतजार करना पड़ता है। यह ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ विधायिका द्वारा अनिवार्य है ताकि पार्टियों को आत्मनिरीक्षण करने और निर्णय पर फिर से विचार करने का अवसर मिल सके।
हालांकि, वेटिंग पीरियड के लिए यह नियम कुछ मामलों में कठिनाइयों का कारण बनता पाया गया। 2017 में, अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर के मामले में अदालत की दो-जजों की पीठ ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B(2) के तहत निर्धारित छह महीने की वेटिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है और इसे फैमिली कोर्ट असाधारण परिस्थितियों में माफ कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ मामलों में जो उसके समक्ष आए थे, वेटिंग पीरियड को खत्म करने के लिए आर्टिकल 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया। यह कुछ वैवाहिक अपीलों और ट्रांसफर से जुड़ी याचिकाओं में किया गया था, जो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आई थीं, जिसमें पार्टियों ने कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान आपसी समझौता किया था। 2015 में तीन-जजों की पीठ ने इस मुद्दे को संविधान पीठ को संदर्भित किया कि क्या आर्टिकल 142 के तहत शक्तियों को वैधानिक आवश्यकता से दूर करने के लिए लागू किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने कहा कि वह हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-B के अनुसार आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए निर्धारित 6 से 8 महीने की वेटिंग पीरियड को समाप्त करने के लिए संविधान के आर्टिकल 142 के तहत विशेष शक्तियों का उपयोग कर सकती है। पांच जजों की पीठ ने माना कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 142 (1) के तहत पार्टियों के बीच समझौते और हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-B के तहत निर्धारित अवधि और प्रक्रिया के साथ आपसी सहमति से तलाक की डिक्री के अनुदान के मद्देनजर शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर तलाक की मंजूरी देना ‘अधिकार’ का नहीं, बल्कि विशेषाधिकार का मामला है, जिसका विभिन्न तथ्यों को ध्यान में रखकर काफी सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि दोनों पक्षों के साथ ‘पूर्ण न्याय’ हो।
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि ऐसे मामलों में शीर्ष अदालत को पूरी तरह से आश्वस्त और संतुष्ट होना चाहिए कि विवाह ‘पूरी तरह से अव्यावहारिक, भावनात्मक रूप से मृत और बचाने लायक नहीं’ है, इसलिए विवाह को समाप्त करना ही सही समाधान है और आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता।
इन तथ्यों का रखना होगा ध्यान
पीठ ने कहा कि वैवाहिक बंधन ऐसे मोड़ पर पहुंच गया हो, जिसे बचाया नहीं जा सकता, तो इसे तथ्यात्मक रूप से निर्धारित और दृढ़ता से स्थापित करना होता है और इसके लिए कई कारकों पर विचार किया जाना जरूरी है, यथा- दंपति के बीच सहवास की समय अवधि, जब दंपति ने अंतिम बार सहवास किया था, दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगाए गए आरोप की प्रकृति।
संविधान पीठ ने कहा कि जिन अन्य कारकों पर विचार किया जाता है, उनमें समय-समय पर कानूनी कार्यवाही में पारित आदेश, व्यक्तिगत संबंधों पर संचयी प्रभाव, अदालत के हस्तक्षेप या मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को निपटाने के लिए क्या और कितने प्रयास किए गए, और अंतिम प्रयास कब किया गया, जैसे तथ्य शामिल हैं।
पीठ ने कहा कि अलग रहने की अवधि पर्याप्त रूप से लंबी होनी चाहिए, और छह साल या उससे अधिक का समय एक प्रासंगिक कारक होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि लेकिन इन तथ्यों का मूल्यांकन दोनों पक्षों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, जिसमें उनकी शैक्षिक योग्यता, दोनों पक्षों से उत्पन्न बच्चे, उनकी उम्र, बच्चों की शैक्षणिक योग्यता आदि तथ्य शामिल हैं।
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