कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने मंगलवार 17 जनवरी को एक फैसले में कहा कि महिला का बांझपन तलाक के लिए वैध आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि IPC की धारा 498A की परिभाषा के तहत पत्नी से आपसी सहमति से तलाक मांगना मानसिक क्रूरता के बराबर है, जबकि वह बांझपन के कारण पीड़ा है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट पत्नी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पति पर ‘मानसिक क्रूरता’ का आरोप लगाया गया था, जब उसने समय से पहले रजोनिवृत्ति (Menopause) के कारण प्राथमिक बांझपन के बाद तलाक मांगा था। पति ने आपसी सहमति से तलाक के लिए इस आधार पर अर्जी दी थी कि वह लगातार हो रही मानसिक पीड़ा सहन नहीं कर पा रहा था।
हाई कोर्ट का आदेश
जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने कहा कि बांझपन का कारण तलाक का आधार नहीं है। माता-पिता बनने के कई विकल्प हैं। एक जीवनसाथी को इन परिस्थितियों में समझना होगा, क्योंकि एक साथी ही अपने दूसरे साथी की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक शक्ति को वापस पाने में मदद कर सकता है।
पत्नी की मेडिकल कंडीशन के साथ सहानुभूति रखते हुए कोर्ट ने स्वीकार किया कि समय से पहले रजोनिवृत्ति के कारण होने वाला प्राथमिक बांझपन ‘एक ऐसी महिला के लिए एक बड़ा मानसिक आघात है, जो अभी तक मां नहीं बनी है।’ अदालत ने आगे कहा कि स्थिति को उलटा भी किया जा सकता था और ऐसी स्थिति में पति स्वाभाविक रूप से पत्नी से समर्थन की उम्मीद करता होगा।
अदालत ने इस बात पर विचार किया कि पत्नी को प्राथमिक बांझपन की जानकारी होना बड़ा झटका था और आघात के कारण दो साल में उसका लगभग 30 किलोग्राम वजन कम हो गया था। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी परिस्थितियों में ‘जीवनसाथी का यह कर्तव्य है कि वह शक्ति बने’ जो दुर्भाग्य से यहां ऐसा नहीं था।
यह कहते हुए कि पति का आचरण मानसिक क्रूरता के बराबर है, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता के लिए इस तरह की दर्दनाक स्थिति में विपरीत पक्ष को आपसी सहमति से तलाक के लिए कहना बेहद असंवेदनशील था, जो मानसिक क्रूरता के बराबर है जिसने उसके जीवन और स्वास्थ्य को प्रभावित किया।
हाई कोर्ट ने रूपाली देवी बनाम यूपी राज्य (2019) और रणवीर उपाध्याय और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भी भरोसा किया, जिसमें पति के खिलाफ IPC की धारा 498A के तहत एक संज्ञेय अपराध बनाया गया था। इसके साथ ही अदालत ने पत्नी द्वारा उसके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही के खिलाफ पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)