दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया कि एक तलाकशुदा बेटी हिंदू दत्तक ग्रहण (Hindu Adoption) और रखरखाव अधिनियम (HAMA) के तहत अपनी मां या भाई से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है। हाईकोर्ट ने कहा कि एक तलाकशुदा बेटी भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत “आश्रित” नहीं है और वह अपने मृत पिता की संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट ने एक तलाकशुदा बेटी द्वारा अपनी मां और भाई से भरण-पोषण के दावे को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। महिला के पिता की 1999 में मौत हो गई थी और वह अपने पीछे चार वारिस यानी पत्नी, बेटा और दो बेटियां छोड़ गए। महिला का मामला था कि उसे कोई हिस्सा नहीं दिया गया।
महिला ने तर्क दिया कि उसकी मां और भाई रुपये देने पर सहमत हुए। उसे भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 45,000 रुपये इस आश्वासन पर दिए गए कि वह संपत्ति में अपने हिस्से के लिए दबाव नहीं डालेगी। उसने कहा कि उसे केवल नवंबर, 2014 तक नियमित रूप से भरण-पोषण दिया गया, उसके बाद नहीं।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि उसे उसके पति ने उन्हें छोड़ दिया और उसे सितंबर 2001 में एकतरफा तलाक दे दिया गया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि फैमिली कोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उसे अपने पति से कोई पैसा, गुजारा भत्ता या भरण पोषण नहीं मिला। उसने यह भी कहा कि चूंकि उसके पति का पता नहीं चल रहा है, इसलिए वह उससे कोई गुजारा भत्ता या भरण-पोषण नहीं मांग सकती।
हाई कोर्ट
अदालत ने महिला की अपील खारिज करते हुए कहा कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, लेकिन HAMA के तहत वह अधिनियम के तहत परिभाषित “आश्रित” नहीं है और इस प्रकार अपनी मां और भाई से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है।” जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्ण की खंडपीठ ने कहा कि एक अविवाहित या विधवा बेटी को मृतक की संपत्ति में दावा करने के लिए मान्यता दी गई है। लेकिन एक “तलाकशुदा बेटी” भरण-पोषण के हकदार आश्रितों की कैटेगरी में शामिल नहीं है।”
अदालत ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 में मृतक के “आश्रितों” की सूची है। हालांकि इसमें मृतक की अविवाहित या विधवा बेटी शामिल है, लेकिन इसमें तलाकशुदा बेटी शामिल नहीं है। पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने सही कहा कि महिला को पहले ही अपने पिता की संपत्ति से अपना हिस्सा मिल चुका था और इसे प्राप्त करने के बाद वह फिर से अपने भाई और मां से भरण-पोषण का कोई दावा नहीं कर सकती।
अदालत ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भाई और मां होने के नाते प्रतिवादियों ने भी बेटी/अपीलकर्ता को 2014 तक स्वेच्छा से 45,000/- रुपये प्रति माह देकर उसका समर्थन किया था। कोर्ट ने कहा कि महिला के पिता ने उसे और उसकी बहन को 9 एकड़ जमीन की वसीयत दी थी। अदालत को बताया गया कि उन्होंने इसे 2001 में बेच दिया और बिक्री आय साझा की।
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