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Home हिंदी कानून क्या कहता है

Domestic Violence: केंद्र सरकार ने कहा- ‘धारा 498A को समझौता योग्य अपराध बनाना महिलाओं के हित में नहीं है’

Team VFMI by Team VFMI
July 17, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Domestic violence: Making Section 498A compoundable not in interest of women, says Centre (Narendra Modi representation Image)

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बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A को समझौता योग्य अपराध बनाने का निर्देश नहीं दे सकता। जस्टिस एएस गडकरी और एसजी डिगे की पीठ ने यह बात तब कही जब केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि धारा 498A को समझौता योग्य अपराध बनाना महिलाओं के हित में नहीं होगा। खंडपीठ ने कहा कि यह मुद्दा विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि धारा 498A को एक समझौता योग्य अपराध बनाने से महिलाओं के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

बार एंड बेंच के मुताबिक, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया, “हमने केंद्र सरकार का हलफनामा पढ़ा है। हम उन्हें कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते।” हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि उसके पास उन मामलों को रद्द करने की शक्ति है, जहां पक्षकार इसके लिए सहमत हैं।

क्या है पूरा मामला?

हाई कोर्ट एक परिवार के तीन सदस्यों द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने धारा 498A के तहत कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शुरुआत में इस मामले की सुनवाई जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। उस पीठ ने परिवार के तीन सदस्यों के खिलाफ FIR को रद्द कर दिया और केंद्र सरकार को धारा 498A के तहत अपराध को समझौता योग्य बनाने की भी सिफारिश की। उस पीठ ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश राज्य ने 2003 में ही धारा 498A को समझौता योग्य बना दिया था। इसलिए, इसने केंद्र सरकार से जवाब मांगा।

केंद्र का जवाब

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि IPC की धारा 498Aए के तहत सभी वैवाहिक विवाद पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच किए जाने के बाद ही दर्ज किए गए थे। मध्यस्थता के रूप में पूछताछ के बाद यदि मध्यस्थता सेल पक्षों के बीच समझौता कराने में विफल रहता है तो ही FIR दर्ज की जाती है। इसने विधि आयोग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें दर्ज किया गया था कि उसके पास धारा 498A के कथित दुरुपयोग की सीमा के संबंध में अनुभवजन्य अध्ययन पर आधारित कोई विश्वसनीय डेटा नहीं था।

मामला बाद में वर्तमान पीठ को सौंप दिया गया। पीठ ने 13 जुलाई को याचिकाकर्ताओं को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को अपने सुझाव सौंपने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, जो इसके बाद सरकारी अधिकारियों के साथ इस पर चर्चा करेंगे। उसके बाद मामले की सुनवाई होगी।

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