दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में अलग रह रहे एक कपल के तलाक को बरकरार रखते हुए कहा है कि एक साथी द्वारा दूसरे माता-पिता को बच्चे का स्नेह देने से इनकार करना मानसिक क्रूरता के बराबर है। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के 2018 के उस आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी, जिसमें उसने तलाक मंजूर किया था। हाई कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में बेटी पूरी तरह से अलग-थलग हो गई। उसका इस्तेमाल पति के खिलाफ किया गया, जो सेना के एक अधिकारी हैं।
क्या है पूरा मामला?
कपल की शादी साल 1996 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। पति ने फैमिली कोर्ट के समक्ष कई आधारों पर अपनी पत्नी से तलाक मांगा था। इसमें यह भी शामिल था कि सेना का एक अधिकारी होने के नाते उसकी तैनाती विभिन्न स्थाना पर होती थी, लेकिन उसने कभी भी उसके वर्कप्लेस पर उससे मिलने आने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उसे अपनी बेटी से घुलने मिलने नहीं दिया।
पति ने यह भी दावा किया कि उसकी पत्नी पुणे चली गई और पिता एवं बच्ची के बीच किसी भी संपर्क को खत्म करने के लिए बेटी को दिल्ली के स्कूल से हटा लिया। पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने जून 2008 में एकतरफा तौर पर साथ रहना बंद कर दिया और सैन्य अधिकारियों के समक्ष झूठी शिकायतें कीं। उसके खिलाफ निंदनीय आरोप लगाए।
फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार तलाक की मंजूरी दे दी। साल 2018 में फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका पर कपल को तलाक दे दिया था, जिसके खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
हाई कोर्ट
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल की पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि बच्ची का इस तरह से अलगाव एक पिता के प्रति मानसिक क्रूरता का चरम कृत्य है, जिसने बच्ची की कभी उपेक्षा नहीं की। कोर्ट ने कहा कि कलह और विवाद कपल के बीच था। रिश्ते में कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो, बच्चे को इसमें लाना या उसका इस्तेमाल पिता के खिलाफ करना उचित नहीं है।
अदालत ने कहा कि माता-पिता में से किसी एक के द्वारा दूसरे को इस तरह के प्यार से वंचित करने का कोई भी कार्य बच्चे को अलग-थलग करने के समान है। यह मानसिक क्रूरता के समान है। अपने स्वयं के बच्चे द्वारा अस्वीकार करने से अधिक कष्टदायक कुछ भी नहीं हो सकता। बच्चे को इस तरह जानबूझकर अलग थलग करना मानसिक क्रूरता के समान है।
कोर्ट ने पति द्वारा रोजाना शराब पीने के संबंध में पत्नी की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति रोजाना शराब पीता है, वह शराबी नहीं बन जाता या उसका चरित्र खराब नहीं हो जाता, जब तक कि कोई अप्रिय घटना नहीं हुई हो।
अदालत ने यह भी कहा कि वर्कप्लेस पर मित्र बनाने को भी क्रूरता नही कहा जा सकता है, जब तक दोनों पक्ष काम की जरूरतों के कारण अलग रहे हो। पत्नी ने आरोप लगाया कि जब भी वह उससे मिलने जाती थी तो पति गुमसुम रहता था और हमेशा अपने दोस्तों के साथ फोन पर व्यस्त रहता था, जिनमें महिला-पुरुष दोनों शामिल थे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पति के खिलाफ विभाग में शिकायत करने में पत्नी का आचरण “एक शिक्षित पति या पत्नी से उम्मीद नहीं की जा सकती” और “प्रतिवादी (पति) को नीचा दिखाने के लिए उसके प्रतिशोध को साबित करता है”। इसके साथ ही कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज कर दी।
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