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Home हिंदी कानून क्या कहता है

तलाकशुदा पत्नी वैवाहिक मकान को शेयर्ड घर होने का दावा करके उससे चिपकी नहीं रह सकती: केरल हाईकोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
September 7, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Ex Wife Cant Claim Right To Shared Matrimonial Household Kerala High Court

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केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा पारित बेदखली के एक आदेश को रद्द करते हुए कहा कि तलाकशुदा पत्नी वैवाहिक घर को शेयर्ड घर होने का दावा करके उससे चिपकी नहीं रह सकती।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अपीलकर्ता पूर्व पत्नी ने प्रतिवादी पति और उसके परिवार को वैवाहिक घर का कब्जा देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। घर पति की दिवंगत मां का है। उनकी मौत के बाद प्रतिवादी ने घर पर कब्जा कर लिया। अपीलकर्ता और प्रतिवादी 1994 में अपनी शादी के बाद उस घर में रह रहे थे। 2015 में उनका तलाक हो गया, जिसके बाद उत्तरदाताओं ने पूर्व पत्नी से घर का कब्जा वापस पाने के लिए मूल याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादियों को कब्जा देने का आदेश दिया, जिसे अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट

जस्टिस ए. मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस ने कहा कि आक्षेपित निर्णय द्वारा फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार याचिका अनुसूची भवन से बेदखल करने का आदेश दिया। उस भवन में निवास के लिए उसके दावे को खारिज कर दिया, क्योंकि शेयर्ड घर एक सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा दी गई बेदखली की डिक्री को खत्म नहीं कर सकता। मामले के किसी भी दृष्टिकोण से अपीलकर्ता को याचिका अनुसूची भवन में रहने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए वह उस भवन को तुरंत खाली करने के लिए बाध्य है।

अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता यह कहकर घर पर अधिकार का दावा कर रही थी कि यह उसका शेयर्ड घर है और वह 1994 में अपनी शादी के बाद से वहां रह रही है। न्यायालय ने माना कि फैमिली कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता के पास स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह 2015 में ही भंग हो चुका है। कोर्ट ने कहा कि उसे ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि उसके पास उस संपत्ति पर कोई स्वामित्व है। इसलिए हम फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत हैं कि वह याचिका शेड्यूल बिल्डिंग से बेदखल होने के लिए उत्तरदायी है।

कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के खिलाफ घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए विभिन्न मामले दायर किए थे, जिन्हें खारिज कर दिया गया था। अदालत ने यह भी पाया कि अपीलकर्ता ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत निवास और मुआवजे के आदेश की मांग करते हुए वैवाहिक मामला दायर किया। कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी के खिलाफ घरेलू हिंसा के आरोप साबित नहीं हुए।

अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता घर पर कब्जा जारी रखने की कोशिश कर रही थी। इसके अलावा, वह प्रतिवादी द्वारा प्रदान किए गए घर के किसी भी वैकल्पिक प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रही थी। प्रतिवादी के खिलाफ वैवाहिक मामले खारिज कर दिए गए और अपीलकर्ता को कब्जा नहीं दिया गया। कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रावधानों की जांच करने के बाद अपीलकर्ता को बेदखल कर दिया है।

उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर हाई कोर्ट ने अपीलकर्ता को बेदखल करने और प्रतिवादी को कब्जा बहाल करने के लिए फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि परिणामस्वरूप, अपील विफल होती है और उसे खारिज किया जाता है। अपीलकर्ता को याचिका अनुसूची भवन को तुरंत खाली करने का निर्देश दिया जाता है और डिफ़ॉल्ट रूप से उस भवन का दूसरा प्रतिवादी फैमिली कोर्ट से संपर्क कर सकता है। उस स्थिति में फैमिली कोर्ट को यह देखना होगा कि बिना किसी देरी के अनुसूची घर को दूसरे प्रतिवादी के कब्जे में रखा जाए।

READ ORDER | Ex-Wife Cannot Claim Right To Shared Matrimonial Household: Kerala High Court

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