दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पत्नी का पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगातार फर्जी आरोप लगाना और उन्हें पुलिस स्टेशन में बुलाए जाने की धमकी देना क्रूरता का कार्य है जो मानसिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप लगाना और पुलिस कार्रवाई एवं आपराधिक मुकदमे की लगातार धमकियां देना मानसिक क्रूरता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह तलाक का आधार है। उनकी शादी को खत्म करते हुए कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने पति और उसके परिवार को आपराधिक मामले में फंसाने के लिए सब कुछ किया था।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, कपल की शादी 2002 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं। वे 2007 से अलग रह रहे हैं। महिला ने अपने पति के परिवार पर दहेज की मांग और उसके ससुर ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश करने सहित कई आरोप लगाए थे। इस मामले में एक फैमिली कोर्ट ने पहले पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट में अपील की।
हाई कोर्ट
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा जहां लगातार अलगाव की लंबी अवधि रही है, वहां यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वैवाहिक बंधन मरम्मत से परे है और विवाह एक कल्पना बन गया है जो केवल कानूनी बंधन द्वारा समर्थित है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में कानून के उस बंधन को तोड़ने से इनकार करने से विवाह की पवित्रता कायम नहीं होती। इसके विपरीत, यह पक्षों की भावनाओं और संवेदनाओं के प्रति बहुत कम सम्मान दर्शाता है। इसलिए, अदालत ने तलाक की मांग करने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया।
मामले पर विचार करने के बाद, अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया बलात्कार के आरोप झूठे प्रतीत होते हैं, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां पक्ष पुलिस स्टेशन गए जबकि इस घटना का कभी कोई उल्लेख नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि एक बार जब शादी टूटने के बाद मरम्मत संभव नहीं हो पाती है, तो कानून के लिए इस तथ्य पर ध्यान न देना अवास्तविक होगा और यह समाज के लिए हानिकारक और पक्षों के हितों के लिए हानिकारक होगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि पत्नी जिसने आरोप लगाया था कि उसके ससुर ने उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था, लेकिन उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं करवाया। निंदनीय आरोपों को तार्किक निष्कर्ष पर नहीं ले जाया गया और उन्हें बीच में ही छोड़ दिया गया। अदालत ने कहा कि पहली नजर में तो आरोप झूठे लगते हैं, क्योंकि सभी पक्ष कई बार पुलिस स्टेशन गए, लेकिन इस घटना का कभी कोई जिक्र नहीं हुआ।
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों पक्ष 17 वर्षों से अलग-अलग रह रहे हैं। इस प्रकार, उनके बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट को यह सोचना चाहिए था कि इस तरह के विवाह का संरक्षण पूरी तरह से अव्यवहारिक है और यह पक्षों के लिए दुख का एक बड़ा स्रोत होगा। इसके साथ ही पीठ ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1956 की धारा 13(1)(ia) और 13(1)(ib) के तहत तलाक की डिक्री द्वारा विवाह को भंग कर दिया।
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