इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने 19 जुलाई, 2022 के अपने एक आदेश में एक ही परिवार के पांच लोगों (चार सगे भाइयों और उनके 81 वर्षीय पिता) के खिलाफ एक आपराधिक मामला खारिज कर दिया। सभी पर एक विवाहित महिला के साथ कथित तौर पर गैंगरेप करने का मामला दर्ज किया गया था, जो दो बड़े बच्चों की मां है। यह निष्कर्ष निकालते हुए कि आक्षेपित कार्यवाही और कुछ नहीं बल्कि याचिकाकर्ताओं को झूठा फंसाने के लिए अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, हाई कोर्ट ने वर्तमान कार्यवाही को रद्द कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
वर्तमान याचिका Cr.P.C. की धारा 482 के तहत दायर की गई थी। इसमें नवंबर 2014 के आदेश के लिए कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं (जो चार सगे भाई हैं) और उनके 81 वर्षीय पिता के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने अभियोक्ता, एक विवाहित महिला के साथ गैंगरेप किया था। महिला के 13 वर्ष और 11 साल के दो बच्चे हैं।
यूपी पुलिस ने अपराध की जांच के बाद याचिकाकर्ताओं और उनके पिता को मामले में बरी करते हुए अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। चूंकि, अभियोक्ता उक्त अंतिम रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थी, उसने उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग लखनऊ के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, लखनऊ ने तब SP, लखीमपुर खीरी को मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पुलिस रिपोर्ट
मार्च 2012 में खीरी के एसपी ने उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, लखनऊ के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें विशेष रूप से कहा गया था कि अभियोजन पक्ष द्वारा स्थापित मामला पूरी तरह से झूठा मामला था। अभियोक्ता दुर्भावनापूर्ण इरादे से याचिकाकर्ताओं को सताना चाहती थी और अभियोक्ता द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट उसके पति और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट के प्रतिशोध में थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जांच अधिकारी ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा स्थापित मामला पूरी तरह से झूठा था और अभियोजन पक्ष के खिलाफ धारा 182 IPC के तहत कार्रवाई करने की सिफारिश की गई थी।
अभियोक्ता ने बाद में एक विरोध याचिका दायर की, जिसे एक शिकायत मामले के रूप में माना गया और अभियोजन पक्ष एवं गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद, याचिकाकर्ताओं को धारा 366, 452 और 376 IPC के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया। निचली अदालत ने नवंबर 2014 में आरोप तय किए।
हाई कोर्ट का आदेश
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को विस्तार से देखा और कहा कि यह विश्वास नहीं होता कि चार सगे भाई और उनके पिता दो बड़े बच्चों वाली महिला का बलात्कार करेंगे। जज ने कहा कि यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि एक आरोपी व्यक्ति की शिकायत पर धारा 363 के तहत FIR दर्ज की गई थी, जिसकी नाबालिग बेटी का कथित रूप से अभियोक्ता के पति और प्राथमिकी में नामित अन्य रिश्तेदारों द्वारा अपहरण किया गया था।
प्रतिशोध के रूप में अभियोक्ता ने ये कार्यवाही दर्ज की है। हालांकि पुलिस को चार सगे भाइयों और उनके पिता द्वारा अपराध करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। न्यायालय ने पुलिस रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत सभी तथ्यों पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और SP, खीरी द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, लखनऊ को प्रस्तुत रिपोर्ट को भी ध्यान में रखते हुए यह अदालत पाती है कि आक्षेपित कार्यवाही कुछ और नहीं बल्कि अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है जिससे कि उसे झूठा फंसाया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता (जो सगे भाई हैं) और उनके पिता (जिनकी आयु लगभग 81 वर्ष है) आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए हैं। इसके साथ ही याचिका को स्वीकार कर लिया गया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, लखीमपुर खीरी की अदालत में लंबित सत्र विचारण की कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।
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