मुंबई में एक नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण करने के आरोप गिरफ्तार 65 वर्षीय बुजुर्ग सोसायटी चेयरमैन को कोर्ट द्वारा सात साल बाद बरी कर दिया गया। स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने पाया कि पार्किंग विवाद के कारण आरोपी व्यक्ति के मामले में झूठा फंसाने के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता है। वह व्यक्ति 2014 में तीन महीने जेल में भी काट चुका था। यह मामला अप्रैल 2021 का है।
क्या है पूरा मामला?
पीड़ित लड़की के माता-पिता के अनुसार, उनकी 5 वर्षीय बेटी 26 जनवरी 2014 को आरोपी की पोती के साथ खेलने गई थी। जब पिता उस शाम 6 बजे अपनी बेटी को जन्मदिन पार्टी में ले जाने के लिए उनके घर पहुंचे, तो वह वहीं रहने के लिए जिद करने लगी, क्योंकि उसकी सहेली सो रही थी। वह उसके साथ खेलना चाहती थी।
यह पूछे जाने पर कि जब उसकी सहेली सो रही थी तो बेटी ने यह सब क्या किया, तो 5 वर्षीय बच्ची ने आरोप लगाया कि उसके दोस्त के दादा (सोसायटी के चेयरमैन) द्वारा उसका यौन उत्पीड़न किया गया था। हालांकि, पिता इस आरोप के बाद भी बेटी को बर्थडे पार्टी में ले गए और अगले ही दिन मां ने शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस से संपर्क किया।
बुजुर्ग के बेटे का बयान
बचाव पक्ष के तौर पर पेश बुजुर्ग शख्स के बेटे ने कहा कि कथित घटना के दिन, वह और उसके परिवार के सभी सदस्य लिविंग रूम में नाश्ता कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि लड़की के पिता ने उनके घर पर आए थे और उन्होंने पार्किंग में उनकी कार पर कुछ कचरा फेंकने की शिकायत की थी। उस समय उनके बीच कुछ आपस में बोल ठोल भी हुआ था।
पॉक्सो कोर्ट
कोर्ट ने माता-पिता को अपनी नाबालिग बेटी को गवाही देने की अनुमति नहीं देने पर कड़ी आपत्ति जताई। अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ लड़की पर हुए अपराध से उसे जोड़ने का कोई सीधा सबूत नहीं है। अगर सच्चाई का कोई तत्व होता, तो माता-पिता उसके साक्ष्य की रिकॉर्डिंग को नहीं रोकते। अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ ठोस, भरोसेमंद सबूत देने में विफल रहा है।
माता-पिता ने दावा किया कि वह इस घटना को भूल गई थी, लेकिन अदालत ने कहा कि एक बच्चा ऐसी घटना को आसानी से नहीं भूलेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक बच्चा अन्य चीजों को भूल सकता है, लेकिन हमेशा अपने निजी अंगों के बुरे स्पर्श को याद रखेगा, जिससे उसे शर्म और शील भंग हुआ है।
अदालत ने आगे कहा कि कोई भी शिक्षित व्यक्ति जो सच्चाई और न्याय प्रणाली में विश्वास करता है, वह अपने बच्चे को सबूत देने से नहीं रोकेगा। अदालत ने कहा कि अच्छी पृष्ठभूमि वाली एक शिक्षित मां होने के नाते, शिकायतकर्ता का यह कर्तव्य था कि वह प्रत्यक्ष और वास्तविक साक्ष्य को रिकॉर्ड में आने दें ताकि बच्चों के हित में गलत काम करने वाले को दंडित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट में बच्चे की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा गया है। दरअसल, मां ने जल्दबाजी में कोर्ट में फर्जी पता भी दे दिया। उसने बाद में खुलासा किया कि वह नहीं चाहती थी कि उसका असली पता अदालत के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए।
बुजुर्ग का बयान (अब बरी)
उस व्यक्ति ने दावा किया कि मामले के कारण उसके कई महत्वपूर्ण साल बर्बाद हो गए और वह भी जब 2014 में जमानत मिलने से पहले उसे 3 महीने जेल में बिताने पड़े। दूसरी ओर नाबालिग लड़की और उसके माता-पिता तब से इमारत से बाहर चले गए थे।
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