केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी मामले के ‘टाइम बाउंड’ डिस्पोजल ( Time-Bound Disposa) की मांग करने वाले आवेदन को उसके लिए ‘समय सीमा’ तय किए बिना खारिज नहीं किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
Latestlaws.com के मुताबिक, इस मामले में याचिकाकर्ता-पत्नी ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1)(i)(a) के तहत 2018 में फैमिली कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी-पति के खिलाफ तलाक के लिए याचिका दायर की थी। इसके बाद, 2022 में याचिकाकर्ता-पत्नी ने मूल याचिका के ‘टाइम बाउंड’ डिस्पोजल के लिए एक वादकालीन आवेदन दायर किया, जिसे फैमिली कोर्ट ने इस अवलोकन के साथ अनुमति दी कि उक्त याचिका का ‘जल्द से जल्द’ निस्तारण किया जाए। अस्पष्ट आदेश से पत्नी को संतुष्टि नहीं मिली, जिसके बाद उसने मूल याचिका के निपटान के लिए समय सीमा तय करने की मांग करते हुए आर्टिकल 227 के तहत हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा।
हाई कोर्ट
जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजितकुमार ने फैमिली कोर्ट के एक आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें उसने इस तरह के एक आदेश पारित करने वाले आवेदन का निस्तारण किया कि मामला “जल्द से जल्द निपटाया जाएगा”। न्यायालय ने टिप्पणी की कि यदि आवेदक ने एक वैध या न्यायोचित कारण प्रदान किया है, तो न्यायालय एक विशिष्ट समय सीमा में निपटान का आदेश देने के लिए बाध्य है।
कोर्ट ने कहा कि यदि आवेदक ने शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान के लिए कोई न्यायोचित या वैध कारण बताया है, तो फैमिली कोर्ट को उस मामले या मामलों की शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान का आदेश देते हुए और समय सीमा तय करते हुए उस आवेदन में एक आदेश पारित करना होगा।
अदालत ने जोर देकर कहा कि पारिवारिक न्यायालयों को समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए नियामक और प्रक्रियात्मक रूपरेखा का कड़ाई से पालन करना चाहिए। साथ ही टिप्पणी की कि विवादित आदेश की अस्पष्ट प्रकृति शिजू जॉय बनाम निशा (सुप्रा) में जारी दिशानिर्देशों की अवहेलना का एक स्पष्ट संकेत है। न्यायालय ने इस प्रकार देखा कि फैमिली कोर्ट ने मूल याचिका के निपटान के लिए समय सीमा तय नहीं कर गलती की है।
कोर्ट ने कहा कि किसी भी उचित या वैध कारण के लिए किसी मामले या मामलों की शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान के लिए एक पक्ष द्वारा किए गए प्रस्ताव को पारिवारिक न्यायालय द्वारा शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान के लिए एक आदेश पारित करके उचित रूप से निपटाया जाना चाहिए। उस मामले या मामलों के मामले में। यदि आवेदक ने शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान के लिए कोई न्यायोचित या वैध कारण नहीं बताया है, तो परिवार न्यायालय को एक संक्षिप्त कारण बताते हुए उस आवेदन को खारिज करना होगा। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मूल याचिका का जल्द से जल्द और कम से कम तीन महीने के भीतर निपटारा करे।
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