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Home हिंदी कानून क्या कहता है

पहली पत्नी की मौत के बाद पति की दूसरी शादी उसे पहली पत्नी से हुए बच्चे का स्वाभाविक अभिभावक होने से अयोग्य नहीं ठहराती: दिल्ली HC

Team VFMI by Team VFMI
September 7, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

PIL in Delhi High Court seeks mandatory FIRs against husbands accused of violence against wives instead of forcing mediation

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पहली पत्नी की मौत के बाद पिता की दूसरी शादी उसे पहली पत्नी से हुए बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक बने रहने से वंचित नहीं करती है। कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने अपनी पहली पत्नी को खो दिया है, उसकी दूसरी शादी उसे उसकी पहली शादी से हुए बच्चे के प्राकृतिक अभिभावक होने से अयोग्य घोषित करने का आधार नहीं हो सकती है। अदालत ने एक पिता को अपने बच्चे से सीमित मुलाकात का अधिकार देते हुए यह टिप्पणी की।

क्या है पूरा मामला?

लड़के के माता और पिता की शादी 2007 में हुई थी। लड़के जन्म 2008 में हुआ था। नाना-नानी का आरोप था कि 2010 में शादी के सात साल के भीतर पति ने उनकी बेटी को मार डाला। उन्होंने पति पर दहेज की मांग और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। हालांकि, पति और उसके परिजनों को नाना-नानी की ओर से दायर आपराधिक मामले में 2012 में बरी कर दिया गया। नाना-नानी ने दावा किया कि पिता के फरार होने के बाद बच्चे को उन्हें सौंप दिया गया था।

नाना-नानी ने बताया कि नाबालिग की कस्टडी हमेशा उनके पास रही है। पिता के बरी होने के बाद ही उसने कस्टडी को ट्रांसफर करने की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि पिता ने दूसरी शादी की है, जिससे उनका एक बच्चा भी है। इस वजह से वह नाबालिग की देखभाल करने में असमर्थ हैं। नाबालिग का अभिभावक नियुक्त किए जाने को लेकर नाना-नानी की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि आपराधिक मुकदमे के अलावा पिता की अयोग्यता के लिए रिकॉर्ड पर कोई अन्य कारक नहीं था।

कोर्ट का आदेश

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि वित्तीय स्थित में असमानता भी किसी बच्चे की कस्टडी प्राकृतिक माता-पिता को देने से इनकार करने के लिए एक प्रासंगिक कारक नहीं हो सकती है। मामले में एक नाबालिक लड़के के नाना-नानी ने पहले फैमिली कोर्ट में यह अपील की थी कि उन्हें लड़के का स्थायी अभिभावक नियुक्त करने के साथ-साथ लड़के की स्थाई कस्टडी सौंप दी जाय लेकिन फैमिली कोर्ट ने उनकी ये अपील खारिज कर दी थी। फैमिली कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ लड़के के नाना नानी ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

कोर्ट ने कहा कि दूसरा पहलू वह यह है कि उसने दूसरी शादी कर ली है और उसकी दूसरी शादी से एक बच्चा भी है, इसलिए उसे प्राकृतिक अभिभावक नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, उन परिस्थितियों में जब पिता ने अपनी पहली पत्नी को खो दिया हो, केवल दूसरी शादी को उसके प्राकृतिक अभिभावक बने रहने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पति को प्राकृतिक अभिभावक बनने से अयोग्य ठहराने के लिए कोई भी परिस्थिति रिकॉर्ड में नहीं लाई गई थी और फैमिली कोर्ट ने नाना-नानी को नाबालिग के अभिभावक के रूप में नियुक्त करने से इनकार कर दिया था।

अदालत ने आगे कहा कि प्राकृतिक माता-पिता के प्रेम का कोई विकल्प नहीं हो सकता। फैसले में कहा गया कि हालांकि नाना-नानी के मन में बच्चे के प्रति अत्यधिक प्यार और स्नेह हो सकता है, लेकिन यह प्राकृतिक माता-पिता के प्यार और स्नेह का स्थान नहीं ले सकता। कोर्ट ने कहा कि यहां तक कि वित्तीय स्थिति में असमानता भी प्राकृतिक माता-पिता को बच्चे की कस्टडी देने से इनकार करने के लिए एक प्रासंगिक कारक नहीं हो सकती है।

अदालत ने कहा कि हालांकि, गार्डियनशिप और कस्टडी के मामलों में, हमें वहां दुविधा का सामना करना पड़ता है, जहां तर्क यह कहता है कि बच्चे को उसके पिता की कस्टडी में होना चाहिए, जबकि परिस्थितियां और बच्चे की विवेकपूर्ण प्राथमिकता कुछ और ही इशारा करती है। यह बच्चे के हित और भलाई में नहीं हो सकता है कि उसे उस परिवार से बाहर निकाला जाए, जहां वह 11 साल की उम्र से खुशी-खुशी रह रहा है। पीठ ने माना कि पिता को सीमित मुलाकात का अधिकार दिया जा सकता है, जिसे एक साल बाद यदि परिस्थितियां उचित रहें तो उनके आवेदन पर फिर से देखा जा सकता है।

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