दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा है कि जिन वैवाहिक मामलों में आपसी समझौता हो जाता है, वहां भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 377 के तहत अपराध से भी समझौता किया (आपस में मिलकर निपटाया) जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में पार्टियों के बीच समझौता होने के बाद FIR को रद्द किया जा सकता है, क्योंकि पक्षकारों को अपने जीवन में आगे बढ़ना है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस तलवंत सिंह (Justice Talwant Singh) की पीठ ने रिफाकत अली एवं अन्य बनाम राज्य एवं अन्य के मामले में एक समन्वय पीठ द्वारा 26 फरवरी, 2021 को दिए गए एक फैसले से सहमति व्यक्त की, जिसमें अदालत ने IPC की धारा 377 के तहत दर्ज एक FIR को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पक्षकारों ने एक-दूसरे के साथ केवल इसलिए समझौता कर लिया है, क्योंकि यह मामला एक वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ था।
क्या है पूरा मामला?
पति ने इस आधार पर FIR को रद्द करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि पत्नी ने अपने सभी विवादों को पति और ससुराल वालों के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और पिछले साल सितंबर में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया था।
समझौते के अनुसार, यह सहमति हुई थी कि पति पत्नी को सभी दावों, स्त्रीधन, बच्चे के भरण-पोषण और स्थायी गुजारा भत्ता के लिए कुल 74,00,000 रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान करेगा, जबकि पत्नी पूर्वोक्त राशि में से उनके नाबालिग बच्चे के लाभ के लिए बच्चे के नाम पर (जब तक कि वह वयस्क नहीं हो जाता) 10 लाख रुपये निवेश करेगी।
यह भी सहमति हुई कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी और गार्जियनशिप पत्नी के पास रहेगी जो बच्चे की एकमात्र संरक्षक होगी। यह भी सहमति बनी कि पति बच्चे के जन्मदिन पर उसके साथ एक घंटे के लिए वीडियो कॉल कर सकता है या वैकल्पिक रूप से सप्ताह में एक घंटे के लिए बच्चे से मिल सकता है।
कोर्ट का आदेश
लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट ने 6 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा कि समन्वय पीठ का विचार यह है कि वैवाहिक मामलों में, जहां समझौता हो जाता है, वहां आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध से भी समझौता किया जा सकता है और एफआईआर को रद्द किया जा सकता है क्योंकि मामले के पक्षकारों को अपने जीवन में आगे बढ़ना है। मैं उक्त दृष्टिकोण से सहमत हूं।
इसके साथ ही अदालत ने पुलिस थाना अपराध महिला सेल नानक पुरा द्वारा पत्नी की तरफ से दायर शिकायत पर IPC की धारा 406, 498A, 354, 377 एवं 34 के तहत दर्ज एफआरआर को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पक्षकारों ने अपने सभी विवादों को सुलझा लिया है। इसलिए आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध को भी रद्द करने की अनुमति दी जाती है ताकि पक्षकारों के बीच के सभी मनमुटावों को समाप्त किया जा सके और वह अपने जीवन का एक नया अध्याय शुरू कर पाएं।
पति के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज करते हुए हाई कोर्ट की पीठ ने कहा कि पक्षकार समझौते की शर्तों और अदालत में दी गई अंडरटेकिंग का पालन करने के लिए बाध्य रहेंगे। इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.