कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि एक पति अपनी पत्नी से मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) के लिए तलाक ले सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि एक पति को अपनी पत्नी से मानसिक क्रूरता के लिए तलाक दिया जा सकता है यदि वह उसे अपने माता-पिता से अलग होने के लिए मजबूर करती है और उसे ‘कायर और बेरोजगार’ भी कहती है। कोर्ट ने कहा कि पति को अपने माता-पिता से अलग करने के लिए मजबूर करना, उसे कायर (Coward) और बेरोजगार (Unemployed) कहना मानसिक क्रूरता है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच के मुताबिक, हाई कोर्ट पशिम मिदनापुर में फैमिली कोर्ट के 25 मई, 2009 के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक पत्नी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पति को क्रूरता के आधार पर तलाक देने का आदेश दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने 2 जुलाई, 2001 को कपल के विवाह को भंग कर दिया था। पति का तर्क था कि उसकी पत्नी ने उसे ‘कायर और बेरोजगार’ कहा और उसे उसके माता-पिता से अलग करने के लिए छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करती रही।
हाई कोर्ट
जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस उदय कुमार की बेंच ने कहा कि भारतीय परिवार में बेटे का शादी के बाद भी अपने माता-पिता के साथ रहना आम बात है। लेकिन अगर उसकी पत्नी उसके माता-पिता से अलग करने की कोशिश करती है तो उसका कारण कुछ न्यायसंगत होना चाहिए। पीठ ने कहा कि पत्नी के लिए पति को परिवार से अलग होने के लिए कहने का कोई उचित कारण नहीं था, सिवाए घरेलू मुद्दों और अहंकार के टकराव और वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित समस्याओं के उदाहरण के अलावा। इसके साथ ही बताया गया कि पति अपने शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए अपने माता-पिता के घर से किराए के घर में चला गया था।
कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार अपीलकर्ता की ससुराल से दूर अपने पति के साथ अलग रहने की इच्छा न्यायसंगत कारणों पर आधारित नहीं है, क्योंकि यह क्रूरता की कैटेगरी में आता है। आम तौर पर कोई भी पति अपनी पत्नी के इस तरह के कृत्य को बर्दाश्त नहीं करेगा और कोई भी बेटा अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से अलग नहीं होना चाहेगा। अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा पति को परिवार से अलग होने के लिए विवश करने का लगातार प्रयास पति के लिए यातनापूर्ण होगा।
‘मैं उस कायर से नफरत करती हूं, जिससे मैं शादी करने जा रही हूं’
पीठ ने पति और उसके परिवार के प्रति उसके जुझारू रवैये सहित पत्नी की ओर से असभ्य व्यवहार के कई उदाहरणों का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि उसने अपनी व्यक्तिगत डायरी में व्यक्त किया कि ‘मैं उस कायर से नफरत करती हूं जिससे मैं शादी करने जा रही हूं’ और ‘उसके जैसे बेरोजगार व्यक्ति से शादी करने के लिए उसकी कोई सहमति नहीं थी और इस शादी को रोकने की कोशिश की गई, क्योंकि वह कहीं और शादी करना चाहती थी। लेकिन उसके माता-पिता ने जबरन उसकी शादी याचिकाकर्ता से कर दी।’
अदालत ने आगे कहा कि पत्नी ने पति के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई थी, जिससे उसकी सरकारी नौकरी चली गई। पीठ ने कहा, “उसकी नौकरी जाने के बारे में सुनने के बाद उसने कहा कि कोई समझौता नहीं किया जाएगा और वह उसे अपनी सर्विस में शामिल नहीं होने देगी। ये तथ्य पति पर मानसिक क्रूरता के बराबर हैं।”
कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक अलगाव, मानसिक और शारीरिक यातना, एक साथ रहने के लिए पक्ष की अनिच्छा ने उनके वैवाहिक बंधन को सुधारने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। ऐसी स्थिति में कानूनी बंधन द्वारा समर्थित होने के बावजूद विवाह एक कल्पना बन गया है।
अदालत ने कहा कि उस बंधन को तोड़ने से इनकार करके ऐसे मामलों में कानून विवाह की पवित्रता की सर्विस नहीं करता है। इसके विपरीत, यह पार्टियों की भावनाओं और भावनाओं के लिए बहुत कम सम्मान दिखाता है जो मानसिक क्रूरता का कारण बन सकता है। पीठ ने पत्नी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि इसलिए तलाक की डिक्री देने से इनकार करना पक्षकारों के लिए विनाशकारी होगा।
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