गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने एक मई को अपने एक फैसले में कहा कि अगर कोई कर्मचारी सीवर की सफाई के काम में लगा है तो निगम के नगर आयुक्त, संबंधित नगर पालिका के चीफ ऑफिसर और संबंधित ग्राम पंचायत के सरपंच को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाथ से मैला ढोने वालों के रोजगार पर रोक और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 और उसमें बनाए गए नियमों को सही तरीके से लागू करने और हाथ से मैला ढोने के कारण जान गंवाने वाले कर्मचारियों को उचित मुआवजा देने की मांग की गई थी। गुजरात सरकार ने 21 जून 2014 को मैला ढोने की प्रथा पर बैन लगा दिया था। हालांकि, इसने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण 152 लोगों की जान चली गई है, जिसमें मृतक कर्मचारियों को सीवरेज में घुसकर सफाई करने के लिए कहा गया था।
राज्य सरकार ने आगे कहा कि उसने 137 व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारियों को मुआवजे की राशि का डिटेल्स दिया है। राज्य द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि अधिकारी उन मृतक श्रमिकों के कानूनी उत्तराधिकारियों के डिटेल्स का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने सीवरेज की सफाई में अपनी जान गंवाई थी।
हाई कोर्ट
एक्टिंग चीफ जस्टिस एजे देसाई और जस्टिस बीरेन वैष्णव ने कहा कि हम ये स्पष्ट करते हैं कि सुनवाई की अगली तारिख तक अगर कोई कर्मचारी जिसकी सेवा नगर निगम, किसी नगर पालिका या किसी ग्राम पंचायत द्वारा संबंधित क्षेत्र में सीवरेज की सफाई के लिए ली गई है तो संबंधित निगम के नगर आयुक्त कार्रवाई के लिए संबंधित नगर पालिका के चीफ ऑफिसर और संबंधित ग्राम पंचायत के सरपंच जिम्मेदार होंगे, क्योंकि सरकार के संकल्प दिनांक 21 जून 2014 द्वारा ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
इसके साथ ही अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि सुनवाई की अगली तारीख से पहले मृत श्रमिकों के कानूनी उत्तराधिकारियों को सरकारी संकल्प की योजना के अनुसार मुआवजे की राशि वितरित की जाए। इस मामले को सुनवाई के लिए फिर से 19 जून 2023 को सूचीबद्ध किया गया है।
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