एक असाधारण परिस्थिति मानते हुए पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने हाल ही में जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह पिछले सात वर्षों से जेल में बंद एक हत्या के दोषी को उसकी पत्नी की याचिका के आधार पर 90 दिन की पैरोल पर रिहा करें नहीं तो वह बांझपन (infertility) का सामना कर सकती है। जस्टिस राजीव रंजन सिंह (Justice Rajiv Ranjan Singh) ने कैदी विक्की आनंद पटेल की पत्नी रंजीता पटेल की याचिका पर शनिवार 27 मई को पैरोल मंजूर कर ली।
क्या है पूरा मामला?
द टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) के मुताबिक, विक्की नाम के दोषी ने सात साल पहले नालंदा में एक व्यक्ति को बुरी तरह से पीटा था। इसके बाद घायल पीड़िता ने घटना के 16 दिन बाद दम तोड़ दिया। इसके बाद विक्की पर पहले IPC की धारा 307, 341, 342, 120B और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, पीड़िता की मौत के बाद FIR में धारा 302 जोड़ी गई और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
महिला का तर्क
महिला के वकील ने कोर्ट को बताया कि यह घटना विक्की और रंजीता की शादी के महज पांच महीने बाद की है। घटना के बाद वह अब तक सात साल जेल में काट चुका है। रंजीता ने अदालत के समक्ष अपनी याचिका में कहा कि उसकी शादी कानूनी थी और चूंकि उसका पति जेल में है, इसलिए उसे बांझपन का सामना करना पड़ सकता है। महिला ने अदालत से अपने पति को 90 दिन की पैरोल देने या खुद को भी जेल में डालने की अपील की थी।
हाई कोर्ट का आदेश
पटना हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में कहा गया है कि एक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार है। जस्टिस राजीव रंजन सिंह ने कहा कि यह उस व्यक्ति को दिया जा सकता है जो अपराध में शामिल नहीं है लेकिन इससे प्रभावित है। इसलिए कोर्ट ने बिहार सरकार को सुधारों पर कार्रवाई करने और 30 दिनों के भीतर जेल मैनुअल में संशोधन करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि डेनमार्क जैसे कई देशों में पांच महीने तक जेल में बंद कैदी को हफ्ते में एक दिन की छुट्टी दी जा रही है। इसी तरह, ब्राजील, फ्रांस, अमेरिका और अन्य देश भी वैवाहिक अधिकारों के तहत कैदियों को सप्ताह में एक दिन अपने परिवार के साथ रहने की अनुमति देते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने पति को 90 दिन की पैरोल दे दी।
हालांकि, अदालत ने कहा कि इसके लिए जेल मैनुअल में कोई प्रावधान नहीं है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि आम तौर पर कैदियों को पैरोल अधिकतम 30 दिनों के लिए दिया जाता है जबकि फरलो अधिकतम 14 दिनों के लिए दिया जाता है।
कोर्ट ने नियमों का दिया हवाला
जेल मैनुअल के अनुसार, एक खंड है कि यदि गर्भवती महिला कोई अपराध करती है, तो उसे जेल नहीं भेजा जाएगा क्योंकि अपराध महिला ने किया था न कि उसके पेट में पल रहे बच्चे ने। इसी तरह, अदालत ने कहा कि रंजीता और विक्की की शादी कानूनी थी और उसे उसके पति द्वारा किए गए अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। अदालत ने याचिकाकर्ता की इस बात को भी स्वीकार किया कि हत्या के आरोपी को शादी में शामिल होने सहित कई अन्य मौके पर पैरोल या फरलो दिया जा सकता है। इसके अलावा अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता है, परीक्षा में शामिल होने के लिए, सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए, अगर कोई कैदी जेल की अवधि के दौरान किताबें लिखता है, तो प्रकाशनों के लिए अदालत पैरोल देती है। हालांकि, कोर्ट ने माना कि दाम्पत्य जीवन जीने के लिए एक कैदी को अधिकार प्रदान करने के लिए जेल कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
महिला ने जताई खुशी
न्यूज एजेंसी IANS के हवाले से TOI में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, फैसले के बाद रंजीता ने कहा, “जैसा कि मेरे पति को हमारी शादी के पांच महीने बाद ही दोषी ठहराया गया था और जेल भेज दिया गया था। इसलिए मुझे बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। वह सात साल से जेल में है। हमारी शादी कानूनी थी और इसलिए मैंने मानवीय आधार पर हमारे मुद्दे को देखने के लिए अदालत से अनुरोध किया है।” महिला ने कहा, “मुझे खुशी है कि अदालत ने मेरे पति को 90 दिन की पैरोल दी है ताकि वह मेरे साथ रह सके।”
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