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Home हिंदी कानून क्या कहता है

तलाक की डिक्री पर रोक के दौरान पति द्वारा दोबारा शादी करना IPC की धारा 494 के तहत कोई अपराध नहीं: केरल HC

Team VFMI by Team VFMI
September 29, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Kerala High Court Grants Bail To Dimple Lamba Who Allegedly Facilitated Rape Of 19-Year-Old Model In Kochi

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केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने सितंबर 2021 में दिए अपने एक फैसले में माना था कि यदि कोई पक्ष उस समय दूसरी शादी कर लेता है, जब पहली शादी के तलाक की डिक्री की अपील लंबित हो, तो वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 के तहत द्विविवाह के अपराध का दोषी नहीं होगा, अगर बाद में तलाक की अपील खारिज हो जाती है।

केरल हाई कोर्ट द्विविवाह का आरोप लगाने वाली एक शिकायत को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका को अनुमति देते हुए अदालत ने फैसला सुनाया था कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 15 हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 को ओवरराइड नहीं करती है, जो अपील का अधिकार प्रदान करती है।

जस्टिस पी. सोमराजन ने आपराधिक मिश्रित याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि एक बार जब अपील फैमिली कोर्ट के तलाक की डिक्री की पुष्टि करते हुए खारिज कर दी जाती है, तो यह अधिनियम की धारा 15 के तीसरे अवयव के तहत आ जाएगी, भले ही शादी अपील की प्रस्तुति से पहले या अपील के समापन से पहले की गई हो।

क्या है पूरा मामला?

कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले में की गई, जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील के लंबित रहने के दौरान उसके पति ने दूसरी शादी कर ली। इसके बाद उस व्यक्ति/पति के खिलाफ IPC की धारा 494,114 रिड विद 34 के तहत अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था। इसी शिकायत को रद्द करने की मांग करते हुए इस व्यक्ति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

याचिकाकर्ता ने दूसरी शादी फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक की डिक्री देने के बाद की थी, लेकिन उस समय एक अपील लंबित थी और कोर्ट ने तलाक की डिक्री पर रोक लगा रखी थी। अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या आईपीसी की धारा 494 और 114 के तहत अपराध उस समय आकर्षित होगा, जब पहली शादी के तलाक की डिक्री के बाद लेकिन उसकी अपील के समापन से पहले दूसरी शादी कर ली गई हो?

केरल हाई कोर्ट

द्विविवाह के अपराध पर विचार करने के बाद केरल हाई कोर्ट ने अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक वैधानिक पूर्व-आवश्यकताएं निर्धारित की, जो इस प्रकार है:-

(1) आरोपी ने पहली शादी का अनुबंध किया हो
(2) उसने दोबारा शादी कर ली हो
(3) पहली शादी अभी जारी हो
(4) पति/पत्नी जीवित होना चाहिए

इसके अतिरिक्त, गोपाल लाल बनाम राजस्थान राज्य (AIR 1979 (SC)713) में दिए गए आदेश के अनुसार, दूसरा विवाह पहले पति या पत्नी के जीवनकाल में होने के कारण अमान्य माना जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की संशोधित धारा 15 उस चरण से संबंधित है, जिसमें एक तलाकशुदा व्यक्ति दूसरी शादी में वैध रूप से प्रवेश कर सकता है। इसमें कहा गया है कि विवाह भंग की डिक्री के बाद या तो अपील करने का अधिकार नहीं है या यदि ऐसा अधिकार है। अपील प्रस्तुत किए बिना ही अगर अपील करने का समय समाप्त हो गया है या अपील प्रस्तुत की गई है, लेकिन खारिज कर दी गई है, तो विवाह के दोनों पक्षकारों में से कोई भी फिर से विवाह कर सकता है,जो वैध होगा।

क्या कहता है एक्ट?

तत्काल मामले में, हालांकि पति ने स्थगन आदेश के दौरान ही दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन बाद में तलाक की डिक्री की पुष्टि करते हुए अपील खारिज कर दी गई थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐसी परिस्थितियों में विलय का सिद्धांत लागू हो जाएगा और फैमिली कोर्ट की डिक्री अपीलीय डिक्री में विलय हो जाएगी। इसलिए, डिक्री प्रथम अपीलीय डिक्री की तारीख से नहीं, बल्कि फैमिली कोर्ट द्वारा दी गई तलाक की डिक्री की तारीख से लागू होगी।

कोर्ट ने कहा कि अपील में पुष्टि की गई तलाक की डिक्री फैमिली कोर्ट के तलाक की मूल डिक्री की तारीख से प्रभावी होगी और अपीलीय डिक्री फैमिली कोर्ट के तलाक के डिक्री की तारीख पर वापस आ जाएगी। अदालत ने लीला गुप्ता बनाम लक्ष्मी नारायण और अन्य (AIR 1978 SC 1351) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को भी संदर्भित किया। यह भी कहा गया कि फैमिली कोर्ट के तलाक के डिक्री की पुष्टि करने वाली अपील खारिज होने के बाद, यह एक्ट की धारा 15 के तीसरे अवयव के तहत आ जाएगी, भले ही शादी अपील की प्रस्तुति से पहले या अपील के समापन से पहले की गई हो।

अतः ऐसे मामलों में IPC की धारा 494 के तहत अपराध आकर्षित नहीं होगा। अपील में तलाक की डिक्री की पुष्टि होने के कारण, पहला विवाह फैमिली कोर्ट की डिक्री की तारीख से भंग हो जाएगा और उसके बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि आईपीसी की धारा 494 के उद्देश्य के लिए एक विवाह संबंध या एक जीवित पति या पत्नी मौजूद है। याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 114 के तहत आरोपित अपराध तब आकर्षित नहीं होगा जब आईपीसी की धारा 494 के तहत मुख्य आधार निष्क्रिय और गैर-स्थायी हो जाएगा। हाई कोर्ट ने आखिरी में कहा कि इसलिए, आईपीसी की धारा 494, 114 रिड विद 34 के तहत अपराध के लिए लिया गया संज्ञान कानून की नजर में मान्य नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।

READ ORDER | Husband Cannot Be Charged With Bigamy If He Remarried While Divorce Decree Was Stayed, Appeal Dismissed Later

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