बारिश हो या धूप… एक पति से अपेक्षा की जाती है कि वह भारतीय अदालतों द्वारा परिभाषित वैवाहिक कानून के अनुसार प्रोवाइडर के हर कर्तव्य को पूरा करे। हालांकि, इसके उलट एक मामले में गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने मार्च 2020 में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पत्नी को लंदन से लौटने और अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने का निर्देश दिया गया था।
क्या था पूरा मामला?
– यह कपल गुजरात में भुज के पास माधापार शहर का रहने वाला था।
– उन्होंने साल 2009 में शादी की थी।
– पति के साथ कुछ समय रहने के बाद महिला लंदन चली गई और वहां एक बेटी को जन्म दिया।
– बेटी उस वक्त (मार्च 2020 में) ब्रिटेन के किंग्सबरी इलाके के एक स्कूल में पढ़ रही थी।
– पति ने भी अपनी पत्नी के साथ लंदन जाने का फैसला किया।
– हालाकि, लंदन में पत्नी से विवाद के बाद वह भारत लौट आया।
– 2015 में पत्नी ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करा दी।
– 2016 में महिला ने भुज के फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी भी दे दी। हालांकि, खुद 2017 में इस याचिका को वापस ले लिया।
फैमिली कोर्ट
दूसरी ओर पति ने अपनी पत्नी पर जानबूझकर परित्याग का आरोप लगाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के प्रावधानों के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। फैमिली कोर्ट ने पति की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि वह ब्रिटेन में रहने का जोखिम नहीं उठा सकता है और इसलिए उसकी पत्नी को भी लंदन में नहीं रहना चाहिए और उसे वापस गुजरात आ जाना चाहिए। हालांकि, गुजरात हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बिना किसी आधार के पाया और उसे रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट ने देखा पति का व्यवहार
2019 में पति ने अपनी पत्नी के लिए भारत लौटने और उसके साथ रहने के लिए एक आवेदन दायर किया। पति ने पत्नी के भारत लौटने का इंतजार किया। हालांकि, जब महिला ऐसा करने में विफल रही, तो उसने जनवरी 2020 में यूके की एक अदालत में तलाक की अर्जी दायर की।
हाई कोर्ट के अनुसार, पति एकतरफा तलाक की याचिका दाखिल नहीं कर सकता है। दूसरी तरफ पत्नी से अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने की उम्मीद भी नहीं कर सकता है। इस प्रकार, हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील को स्वीकार कर लिया।
अदालत ने यह भी नोट किया कि सिर्फ इसलिए कि एक महिला ने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया और अपनी बेटी के साथ ब्रिटेन में रहने का विकल्प चुना (कथित घरेलू हिंसा के आधार पर), यह जरूरी नहीं है कि वह अपने पति के समाज से हट गई है।
हमारा टेक
– हमारे भारतीय कानूनों द्वारा शादी को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है कि सभी जिम्मेदारियां और कर्तव्य पति के हैं, जबकि एक महिला को किसी भी ‘वैवाहिक कर्तव्य’ के बोझ के बिना अपने लिए सबसे अच्छा निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है।
– यदि एक महिला से गठबंधन में समान रूप से भागीदार होने की उम्मीद की जाती है, तो वही ‘घरेलू हिंसा’ बन जाती है और उस महिला पर अत्याचार होता है जिसे कथित तौर पर मुक्त होने की अनुमति नहीं है।
– उपरोक्त मामले का विश्लेषण करें तो कपल ने 2009 में शादी की और महिला तुरंत अपने वैवाहिक घर से बाहर निकल गई और लंदन में शिफ्ट हो गई।
– एक महिला जो अपने ससुराल वालों के साथ कभी नहीं रही, वह 6 साल के अंतराल के बाद उन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाती है।
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)