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Home हिंदी कानून क्या कहता है

महिलाएं आजकल पैसा हड़पने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल कर POCSO/SC-ST एक्ट के तहत फर्जी FIR दर्ज करा रही हैं: इलाहाबाद HC

Team VFMI by Team VFMI
August 18, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Domestic Violence Act: Allahabad High Court

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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने 10 अगस्त को एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्य से पैसे हड़पने के लिए महिलाओं द्वारा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC-ST एक्ट) के तहत फर्जी शिकायतें दर्ज करने की स्पष्ट प्रवृत्ति पर नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि समाज में उनकी छवि खराब करने के लिए निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ ऐसी झूठी शिकायतें दर्ज की जाती हैं।

अदालत ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजकल अधिकतम मामलों में महिलाएं POCSO/SC-ST एक्ट के तहत झूठी FIR दर्ज कर रही हैं। इसे राज्य से पैसे हड़पने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि इस तरह की फर्जी FIR सिर्फ राज्य से पैसा लेने के लिए दर्ज की जा रही हैं। इससे राज्य की छवि खराब हो रही है।

क्या है पूरा मामला?

बार एंड बेंच के मुताबिक, हाई कोर्ट 2011 में बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि मामले में FIR कथित घटना के लगभग 8 साल बाद 2019 में दर्ज की गई थी, जिसमें देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था। इसमें आगे यह तर्क दिया गया कि पीड़िता स्वयं आवेदक के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमत हुई थी, जिससे पता चलता है कि उसने स्वेच्छा से इसमें भाग लिया था। इसके अलावा, POCSO एक्ट के तहत शिकायत लागू नहीं होगी, क्योंकि महिला की उम्र 18 वर्ष से अधिक थी।

हाई कोर्ट

जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने कहा कि समाज में केवल राज्य से पैसा लेने के लिए निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ POCSO एक्ट के साथ-साथ SC/ST एक्ट के तहत कुछ झूठी एफआईआर दर्ज की जाती हैं, जिससे समाज में उनकी छवि खराब हो जाती है। अदालत ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजकल ज्यादातर मामलों में महिलाएं पैसे हड़पने के लिए इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं, जिसे रोका जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को यौन हिंसा के बढ़ते मामलों के मुद्दे पर संवेदनशील होना चाहिए। पीठ ने कहा, “यौन हिंसा के इस प्रकार के अपराधों की व्यापक और दैनिक बढ़ती व्यापकता को देखते हुए, मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि उत्तर प्रदेश राज्य और यहां तक कि भारत संघ को भी इस गंभीर मुद्दे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।”

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में भौतिक विरोधाभास हैं। उसी के मद्देनजर, मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त किए बिना और आवेदक के आरोपों की प्रकृति और पृष्ठभूमि पर विचार किए बिना, अदालत ने उसे अग्रिम जमानत दे दी। इसमें यह भी कहा गया कि मामला झूठा पाए जाने पर शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाए।

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