कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक ईसाई कपल के शादी को इस आधार पर शून्य यानी अवैध घोषित कर दिया कि महिला ने शादी के समय अपनी वास्तविक उम्र को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था और छुपाया था।
क्या है पूरा मामला?
लीगल वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अपीलकर्ता और प्रतिवादी भारतीय ईसाई हैं। कपल की शादी 2014 में भद्रावती में हुई थी। प्रतिवादी का विवाह प्रस्ताव स्पष्ट रूप से उसकी मां और भाई द्वारा लाया गया था जो दर्शाता है कि विवाह के समय प्रतिवादी (पत्नी) की आयु 36 साल है और इस तरह के प्रतिनिधित्व के आधार पर अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों ने सद्भावना से विवाह के लिए सहमति दी थी।
आरोप है कि जब अपीलकर्ता ने प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों से पूछा तो अंत में पता चला कि वह लंबे समय से एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित है। यह भी पता चला कि शादी के समय प्रतिवादी की उम्र 41 साल थी। हालांकि, उन्होंने प्रतिनिधित्व किया कि उसकी उम्र 36 साल थी, जब वे शादी का प्रस्ताव लाए थे। पत्नी अपीलकर्ता पति से 4 साल बड़ी है और शादी के लिए अपीलकर्ता की सहमति धोखे, गलतबयानी और भौतिक तथ्यों को छिपाकर प्राप्त की गई थी।
इस प्रकार यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों का कृत्य धोखाधड़ी और गलतबयानी के बराबर है, क्योंकि उन्होंने प्रतिवादी की उम्र और स्वास्थ्य के मुद्दों के भौतिक तथ्यों को छुपाकर शादी के लिए सहमति प्राप्त की थी। इसलिए अपीलकर्ता और प्रतिवादी के विवाह को शून्य घोषित करें।
हाई कोर्ट
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस विजयकुमार पाटिल की खंडपीठ ने भारतीय तलाक एक्ट की धारा 18 के तहत दायर याचिका को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए पति द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। फैमिली कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता (पति) प्रतिवादी के साथ अपनी शादी को शून्य घोषित करने के आधार को साबित करने में विफल रहा। रिकॉर्ड देखने पर कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने पैरा 5 में अपनी याचिका में स्पष्ट रूप से दलील दी है कि प्रतिवादी पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों ने महत्वपूर्ण तथ्य यानी प्रतिवादी की उम्र को छुपाया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने अपनी जिरह में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि शादी के प्रस्ताव के समय उसकी उम्र 41 साल थी। हालांकि, उसने अपनी उम्र 36 साल बताई है। अपने फैसले में अदालत ने ये भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने रिकॉर्ड पर दलील और सबूतों की सराहना करने में गलती की है। इस तरह अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से अपीलकर्ता ने 01 मई 2014 को दोनों पक्षों के बीच हुए विवाह को अमान्य घोषित करने के आधार को साबित कर दिया है।
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