कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (महिलाओं के प्रति क्रूरता) के तहत एक पति के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को खारिज कर दिया, क्योंकि वह ब्रह्मकुमारी समाज की बहनों का अनुयायी था। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा शारीरिक संबंध से इनकार करना हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के तहत क्रूरता है, लेकिन IPC की धारा 498A के तहत नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ 2020 में उसकी पत्नी द्वारा दर्ज आपराधिक मामले में कार्यवाही को रद्द कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
पार्टियों ने दिसंबर 2019 में शादी की थी। याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता पत्नी के बीच शादी जल्दी टूट गई थी। पत्नी केवल 28 दिनों के लिए अपने ससुराल में रही। पत्नी का आरोप था कि पति ब्रह्माकुमारी समाज की बहनों का अनुयायी है, इसलिए जब भी वह उसके पास जाती तो वह उससे कहता कि उसे शारीरिक संबंध बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए उसने कहा कि ब्रह्माकुमारी समाज का अनुयायी होने के नाते याचिकाकर्ता शादी नहीं करने का विकल्प चुन सकता था। शिकायतकर्ता-पत्नी ने दो शिकायतें दर्ज कराई। एक IPC की धारा 498A के तहत अपराध के लिए शिकायत दर्ज कराई और दूसरी हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 12(1)(A) के तहत शादी को रद्द करने की मांग करते हुए आपराधिक मामला दर्ज कराई।
पति ने हाई कोर्ट का किया रूख
याचिकाकर्ता पति ने क्रूरता के अपराध के साथ-साथ दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराधों के लिए उसके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था। उसने साथ-साथ पति के खिलाफ तत्काल आपराधिक मामला और साथ ही साथ हिंदू मैरिज एक्ट के तहत क्रूरता के आधार पर शादी को रद्द करने की याचिका दायर की। बाद की अनुमति संबंधित अदालत ने नवंबर 2022 में दी थी।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोप धारा 498A के तहत निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। हालांकि, शिकायतकर्ता पत्नी ने दावा किया कि जब भी वह उससे संपर्क करती थी, वह हमेशा ब्रह्माकुमारी बहन के वीडियो देखता था। उसने यह भी दावा किया कि उसने हमेशा उससे कहा कि उसे शारीरिक संबंध में कोई दिलचस्पी नहीं है। पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दहेज की मांग को लेकर कई अन्य आरोप नहीं लगाया गया था।
हाई कोर्ट का आदेश
बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि मामले के तथ्य स्पष्ट रूप से तलाक के आधार के रूप में क्रूरता की कैटेगरी में आते हैं, लेकिन आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा, “पति के खिलाफ भी कोई सामग्री नहीं मिलने पर, यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह उत्पीड़न में बदल जाएगी, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बन जाएगी और अंततः न्याय का अपराध हो जाएगा।”
अदालत ने आगे पाया कि सास-ससुर के खिलाफ भी कोई मामला नहीं बनता था, जो कभी भी कपल के साथ नहीं रहे। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की उसके पति के खिलाफ शिकायत प्रकृति में तुच्छ थी। अदालत ने कहा, “वैवाहिक मामलों में शीर्ष अदालत ने बार-बार निर्देश दिया है कि जब तक प्रथम दृष्टया अपराध साबित नहीं होते हैं, तब तक ऐसी कार्यवाही जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”
कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि शिकायतकर्ता को फैमिली कोर्ट द्वारा शादी के बाद शारीरिक संबंध न बनाने पर क्रूरता के आरोप में तलाक की डिक्री दी थी। इस प्रकार यह आयोजित किया गया उसी आधार पर आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह उत्पीड़न में बदल जाएगी, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए, पति की याचिका को स्वीकार कर लिया गया और उसके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया।
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