कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में नाबालिग बेटी को उसके पिता से मिलने का अधिकार देने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने नाबालिग बेटी को उसके पिता से मुलाकात के अधिकार को इस आधार पर समाप्त करने से इनकार कर दिया कि उसने तलाक के बाद दूसरी शादी कर ली है और उसका एक बच्चा है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्ची की मां ने इस आधार पर इसका विरोध किया था कि उसके पूर्व पति ने उससे तलाक लेने के बाद दूसरी शादी कर ली थी।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, महिला ने तर्क दिया था कि प्रतिवादी (पूर्व पति) एक बार भी बच्चे को देखने के लिए अपीलकर्ता के घर नहीं गया और बेटी की भलाई और एजुकेशन पर कोई पैसा खर्च नहीं किया। महिला ने कहा कि वही बेटी की देखभाल और एजुकेशन का ध्यान रख रही है। इसके अलावा, अवयस्क बच्ची एक स्कूल जाने वाली बच्ची है, उसके पास प्रतिवादी से मिलने का कोई समय नहीं है। महिला ने कहा कि मुलाकात का अधिकार उसकी इच्छा के विरुद्ध दिया गया है।
हाई कोर्ट
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का दावा है कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता से तलाक लेने के बाद दुबारा शादी कर ली और उसकी दूसरी पत्नी के पहले विवाह से एक बच्चा है और बेटा प्रतिवादी की कस्टडी में है, किसी भी मुलाक़ात का अधिकार देना नाबालिग बेटी के स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा। अपीलकर्ता की आशंका को फैमिली कोर्ट द्वारा ध्यान में रखा गया है, यह ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी की नाबालिग बच्ची होने के नाते, स्थायी कस्टडी अपीलकर्ता-मां को दी जाती है।
अदालत ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट ने एक निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी को महिला बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक घोषित नहीं किया जा सकता है। हालांकि प्रतिवादी बच्चे का पिता है, बच्चे को पिता के प्यार, देखभाल और स्नेह की जरूरत है इसलिए मुलाकात का अधिकार देने के साथ-साथ प्रतिवादी को छुट्टियों के दौरान अवयस्क पुत्री को अपने आवास पर ले जाने की अनुमति दी।
पीठ ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट ने विशेष रूप से प्रतिवादी को निर्देश दिया है कि वह मुलाकात के अधिकार का प्रयोग करते समय नाबालिग बच्चे की सुरक्षा का अत्यधिक ध्यान रखे और जब छुट्टियों के दौरान बच्चा उसकी कस्टडी में हो, तो वह नाबालिग बच्चे को किसी भी समय कोई अन्य व्यक्ति के साथ नहीं छोड़ेगा। अदालत ने कहा कि इस प्रकार यह देखा गया कि फैमिली कोर्ट ने मुलाकात का अधिकार देते समय नाबालिग बेटी के कल्याण और भलाई को ध्यान में रखा है, वर्तमान अपील में हस्तक्षेप के लिए दिये गए उक्त निष्कर्ष में कोई त्रुटि नहीं है।
हालांकि, हाई कोर्ट ने मुलाकात की अवधि के संबंध में आदेश में संशोधन किया और निर्देश दिया कि बेटी की कस्टडी लेते समय पिता के साथ बेटी का बड़ा भाई भी होना चाहिए। इसके अलावा, वह बेटी के खर्च और एजुकेशन फीस को अपीलकर्ता के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करेगा।
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