राजस्थान पुलिस (Rajasthan Police) की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है, जहां पुलिसकर्मियों पर रेप के मामले में गलत जांच करने का आरोप लगा है। पुलिस की गलती की वजह से एक निर्दोष शख्स को एक साल से अधिक समय तक जेल की सजा काटनी पड़ी। कोटा की पॉक्सो कोर्ट ने एक युवती से रेप के मामले में पुलिस की गलत जांच पर नाराजगी जताते हुए 6 मई को सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपी को 3 लाख रुपए देने के भी आदेश दिए हैं। ये पैसे तत्कालीन जांच अधिकारी ASI, SHO और SP की सैलरी से काटकर 2 महीने में कोर्ट में जमा कराने होंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह मामला जांच अधिकारी और SP की गंभीर लापरवाही का उदाहरण है।
ये था मामला
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 अगस्त 2020 को पीड़िता के पिता ने रामपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि उनके 6 बच्चे हैं। सबसे बड़ी बेटी 22 साल की है। वह मंदबुद्धि, जिसकी वजह से बोल-सुन नहीं पाती है। पिता ने बताया कि पेट दर्द की शिकायत पर उसे एक दिन डॉक्टर को दिखाने गया तो 4-5 महीने की प्रेग्नेंट बताई। उससे इशारों में गलत काम करने वाले के बारे में पूछा तो उसने पड़ोस में रहने वाले एक युवक का घर बताया।
लड़की की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज कर 14 सितंबर 2020 को युवक को गिरफ्तार कर लिया और 3 दिसंबर 2020 को CJM कोर्ट में चालान पेश कर दिया। यहां से केस डीजे कोर्ट, फिर महिला उत्पीड़न कोर्ट में गया। इसके बाद में पॉक्सो कोर्ट क्रम 4 में सुनवाई के लिए आया। 25 फरवरी 2021 से पॉक्सो कोर्ट में मामले की नियमित सुनवाई शुरू हुई।
सुनवाई के दोरान बचाव पक्ष के वकील ने DNA टेस्ट की एप्लिकेशन लगाई, जिसमें रिपोर्ट नेगेटिव आई। कोर्ट में 19 गवाहों के बयान दर्ज हुए। जबकि 38 दस्तावेज पेश किए गए। इस दौरान आरोपी सितंबर 2021 तक (1 साल से ज्यादा समय तक) जेल में रहा। बाद में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में युवक को जमानत दे दी।
कोर्ट ने बताया लापरवाही
कोर्ट ने फैसले में लिखा कि जांच अधिकारी को घटनास्थल के आसपास रहने वाले किराएदार, मकान के आसपास रहने वाले लोगों और पीड़िता के जीजा के भी DNA सैंपल लेकर जांच करने की आवश्यकता थी। इस मामले में जांच अधिकारी ने कोई मैच्योरिटी नहीं दिखाई। अदालत ने कहा कि SP ने भी अपने दिमाग का पूरा इस्तेमाल नहीं किया और चालान पेश करने का आदेश जारी कर दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में आगे लिखा कि यह मामला जांच अधिकारियों और सिटी एसपी की गंभीर लापरवाही का एक बड़ा उदाहरण है। इस लापरवाही के कारण आरोपी व्यक्ति जिसने पीड़िता के साथ रेप किया वो पकड़ में नहीं आ पाया।
3 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति के आदेश
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पुलिस की वजह से निर्देष युवक एक साल तक जेल में रहा। इस दौरान वह नौकरी नहीं कर पाया। इसके साथ ही समाज में उसकी इज्जत धूमिल हुई। साथ ही वह शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार हुआ। इस पर कोर्ट ने 3 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति के आदेश दिए।
कोर्ट ने कहा कि ये पैसे रामपुरा थाना के तत्कालीन जांच अधिकारी ASI उदय लाल, तत्कालीन SHO पवन कुमार और तत्कालीन सिटी एसपी की सैलरी से वसूले जाएंगे। जिलाधिकारी को भी आदेश की कॉपी भेज दी गई है। दो महिने के अंदर क्षतिपूर्ति राशि कोर्ट में जमा कराने के निर्देश दिए गए हैं।
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