एक्टिंग की दुनिया में पिछले 9 साल से एक्टिव बॉलीवुड अभिनेत्री कृति सैनन (Kriti Sanon) को 25 अगस्त को घोषित राष्ट्रीय पुरस्कारों (National Film Awards 2023) में लक्ष्मण उतेकर (Laxman Utekar) की सरोगेसी (Surrogacy) पर बनी ड्रामा-कॉमेडी फिल्म ‘मिमी (Mimi)’ लिए ‘बेस्ट एक्ट्रेस (Best Actress)’ का पुरस्कार मिला है। कृति सैनन को ‘बेस्ट एक्ट्रेस’ का राष्ट्रीय पुरस्कार आलिया भट्ट (Alia Bhatt) के साथ शेयर करना पड़ा है। आलिया को भी संजय लीला भंसाली की बायोपिक ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए यह पुरस्कार मिला है। ‘मिमी’ में सैनन के सह-कलाकार पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का पुरस्कार मिला है।
फिल्म में दिखाए गए तथ्य कितने सही है?
राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा के बाद कृति सैनन के लीड रोल वाली फिल्म ‘मिमी’ सुर्खियों में है। यह फिल्म सोरोगेसी और सिंगल वीमेन को ध्यान में रखते हुए बनी है। फिल्म ‘मिमी’ पर फैक्ट चेक वेबसाइट “बूम लाइव (Boom Live)” द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें फिल्म में सरोगेसी पर दिखाए गए तथ्यों की जांच की गई है। दरअसल, एक समय था जब भारत पश्चिमी देशों के लिए सरोगेसी का अड्डा बन गया था और यहां किराए की कोख एक व्यापार बन गया था। ‘मिमी’ में इसी मुद्दे को थोड़ा सा इमोशनल तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है।
‘मिमी’ सरोगेसी के साथ सिंगल मदरहूड (Single Motherhood) और गोद लेने को उजागर करने की कोशिश करती है। लेकिन फिल्म सरोगेसी के वास्तविक नियमों के साथ-साथ गर्भावस्था के दौरान मेडिकल जांच का तथ्यात्मक रूप से प्रतिनिधित्व करने में विफल रहती है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है भारत आए एक अमेरिकन कपल जॉन और समर से जिनका ड्राइवर है भानु (पंकज त्रिपाठी)…। जब भानु को पता चलता है कि जॉन और समर अपने बच्चे के लिए एक सरोगेट मदर यानी किराए की कोख की तलाश में हैं तब उन्हें राजस्थान की मिमी (कृति सैनन) से मुलाकात होती है, जो प्रोफेशनल डांसर है।
इसके बाद जॉन और समर बीच में ही ‘मिमी’ की कोख में अपना बच्चा छोड़कर चले जाते हैं। इसके बाद मिमी कैसे अपने बच्चे को पैदा करती है और उसके लिए संघर्ष करती है यही फिल्म की कहानी है। हालांकि, फिर बाद में विदेशी कपल अपने बच्चे को लेने के लिए वापस आ जाते हैं।
तथ्यों के साथ किया गया खिलवाड़!
फिल्म में कानूनी तथ्यों के साथ खिलवाड़ किया गया है। निर्माता ने फिल्म को 2013 के राजस्थान में सेट करके बनाया है। जबकि अमेरिकी कपल को भारत में कमर्शियल सरोगेसी चुनते हुए दिखाकर बच निकलते हैं। सरोगेट्स के साथ दुर्व्यवहार की बढ़ती घटनाओं की रिपोर्टों को देखते हुए भारत ने 2015 में भारतीय महिलाओं को सरोगेट्स के रूप में चुनने वाले गैर-भारतीय नागरिकों के लिए कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया था।
हालांकि, रचनात्मक लाइसेंस की आड़ में निर्माता सरोगेसी और गर्भावस्था से जुड़े तथ्यों को फिल्म में गलत तरीके से पेश करते हैं। पहला तथ्य ये गलत है कि एक महिला जो पहले कभी गर्भवती नहीं हुई है वह फिल्म में सरोगेट है। फिल्म उन कानूनी निहितार्थों को भी समझाने में विफल रहती है जो तब उत्पन्न होते हैं जब सरोगेसी का विकल्प चुनने वाला कपल देश में गर्भपात की अनुमति वाले 20 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को आगे नहीं बढ़ाने का विकल्प चुनता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि सरोगेट के रूप में कृति सैनन का कार्य ऐसे समय में आया है, जब राष्ट्रीय सरोगेसी विनियमन विधेयक 2019 (The National Surrogacy Regulation Bill 2019) जिसका उद्देश्य कमर्शियल सरोगेसी से पूरी तरह से छुटकारा पाना और इसे परोपकारी सरोगेसी से बदलना है, अधर में अटका हुआ है। कई वकीलों और बांझपन एक्सपर्ट ने राज्यसभा में पारित विधेयक के मसौदे का विरोध किया और इसमें बदलाव का सुझाव दिया।
Mimi के ये तथ्य गलत पाए गए! Se
फिल्म में अमेरिकी कपल सरोगेट के रूप में एक अविवाहित महिला ‘मिमी’ को चुनता है, जिसका गर्भावस्था का कोई पिछला इतिहास नहीं है। फिल्म में दिखाया गया ये तथ्य गलत है, क्योंकि भारत सरकार ऐसी महिला को सरोगेट मां के रूप में काम करने की अनुमति नहीं देता है जो पहले कभी गर्भवती नहीं हुई हो। गर्भावस्था का पिछला इतिहास सरोगेट को खुद को बेहतर बनाए रखने में मदद करता है और प्रसवोत्तर प्रतिक्रियाओं में भी मदद करता है।
एक एक्सपर्ट ने Boom Live से कहा कि देश का कानून केवल पहले प्रसव करा चुकी विवाहित महिलाओं को ही सरोगेट के रूप में काम करने की अनुमति है। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए उन्होंने इस नियम को नजरअंदाज करने का विकल्प चुना है। यहां तक कि जब भारत में अंतरराष्ट्रीय सरोगेसी की अनुमति दी गई थी, तब भी सरोगेट का होना अनिवार्य था। कोई ऐसा व्यक्ति जो शादीशुदा था और उसका अपना एक बच्चा है।
‘मिमी’ का मुख्य किरदार निभाने वाली सैनन को राजस्थान के छोटे से शहर शेखावटी में एक 25 वर्षीय प्रोफेशनल डांसर के रूप में दिखाया गया है जो भारतीय सिनेमा अभिनेत्री बनने का सपना देख रही है। अमेरिकी कपल ने उसे चुना, क्योंकि उनका मानना है कि एक डांसर के रूप में वह बच्चे को जन्म देने के लिए पर्याप्त स्वस्थ होगी। सरोगेसी कानून परिभाषित करता है कि सरोगेट के अपने बच्चे के स्वास्थ्य के साथ-साथ उसकी पिछली गर्भावस्था के दौरान उसका अनुभव डॉक्टर के साथ-साथ इच्छुक कपल को यह समझने में मदद करता है कि महिला पूरी अवधि तक बच्चे को पालने में सक्षम होगी या नहीं।
हालांकि, फिल्म उन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करती है। दो अन्य मामलों में फिल्म देश में मेडिकल और सरोगेसी कानूनों को गलत तरीके से पेश करती है। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि सैनन को गर्भावस्था के लगभग पांच से छह महीने बाद मेडिकल जांच कराई जाती है। यह तब होता है जब डॉक्टर इच्छुक कपल को बताता है कि बच्चे में क्रोमोसोमल विपथन हो सकता है यानी संभवतः डाउन सिंड्रोम…। यह पता चलने के बाद कि बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हो सकता है, कपल ने सैनन से बच्चे का गर्भपात कराने के लिए कहा।
IVF एक्सपर्ट डॉ. नयना पटेल ने ‘बूम’ को बताया कि डाउन सिंड्रोम वाले लोग आम तौर पर छोटे कद के और चेहरे की विशिष्ट बनावट वाले पाए जाते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान का कहना है कि पर्याप्त समर्थन और गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक कार्यक्रमों के साथ डाउन सिंड्रोम वाले लोग अपने संज्ञानात्मक कौशल को अपनी पूरी क्षमता से विकसित करने में सक्षम हैं। हालांकि, वास्तव में गर्भावस्था के पहले तिमाही या तीसरे महीने में भ्रूण की क्रोमोसोमल असामान्यताओं जैसे डाउन सिंड्रोम और अन्य जैसे ट्राइसॉमी 13, 18, टर्नर सिंड्रोम की जांच (11 से 14 सप्ताह के बीच में) की जाती है।
यदि किसी असामान्यता का पता चलता है, तो माता-पिता को गर्भावस्था की मेडिकल टर्मिनेशन के लिए आवेदन करने की अनुमति दी जाती है। कानून के अनुसार, माता-पिता को कानूनी रूप से 20 सप्ताह तक भ्रूण का गर्भपात करने की अनुमति है, जबकि राज्यसभा ने हाल ही में एक विधेयक पारित किया है जो विशेष मामलों में गर्भपात की सीमा को 24 सप्ताह तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
कानूनी तथ्य
BOOM ने इसे कानूनी तौर पर समझने के लिए एक वकील अमित करखानिस से भी बात की, जो सरोगेसी कानूनों पर बड़े पैमाने पर काम किया है। करखानिस ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट ऐसा कहता है तो कपल अदालत में गर्भावस्था की मेडिकल टर्मिनेशन के लिए आवेदन कर सकता है यदि पर्मिसिबल 20 सप्ताह तक बढ़ गई है। लेकिन क्रोमोसोमल बनावट की जांच के लिए चेकिंग पहली तिमाही में किए जाते हैं।
यह जानने के बाद कि उनका बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हो सकता है, अमेरिकी कपल ने मिमी और बच्चे को छोड़ दिया। बूम ने पूछा कि क्या सरोगेट को बीच में छोड़ने वाले कपल्स के लिए कोई कानूनी उपाय हैं। डॉ. नयना पटेल ने बताया कि भारत में ऐसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई। उन्होंने कहा कि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) विधेयक में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भले ही बच्चा विकृत हो कपल को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। चूंकि भारत में सरोगेट को केवल भ्रूण यानी एम्ब्रियो ले जाने की अनुमति है और उसके अंडे दान करने की नहीं है। सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 के मुताबिक सरोगेट गर्भधारण के लिए अपना युग्मक (गैमीट), या अंडे की कोशिकाएं (एग सेल्स) प्रदान नहीं कर सकती है।
सरकार का तर्क
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने सरोगेसी अधिनियम को “सामाजिक, एथिकल, मॉरल, लीगल और साइंटिफिक मुद्दों का अनूठा मेल” बताया था। दिप्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पिछले दिनों प्रस्तुत हलफनामे में कहा गया है कि कानून सरोगेट मां के अधिकारों की रक्षा करते हुए बच्चे की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए सरोगेसी की प्रक्रिया में निहित परस्पर विरोधी हितों के सामंजस्य के लिए आवश्यक है।
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