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Home हिंदी कानून क्या कहता है

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज की फैमिली पेंशन के लिए विधवा की याचिका, दूसरी शादी करने को बताया ‘दुराचार’

Team VFMI by Team VFMI
April 12, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

'More Than A Year Is Sufficient For A Prudent Woman To Realize If Marriage Promise Is False': MP High Court Quashes Rape Case

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में फैमिली पेंशन के मामले में अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने माना कि एक सरकारी कर्मचारी की दूसरी पत्नी फैमिली पेंशन की हकदार नहीं है, यदि दूसरी शादी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना और राज्य सरकार से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना की गई हो, जैसा कि प्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियमावली 1965 के तहत अनिवार्य है। इसके साथ ही कोर्ट ने उक्त आदेश के साथ फैमिली पेंशन की मांग संबंधित याचिका खारिज कर दी।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने पति की मृत्यु के बाद फैमिली पेंशन पाने के उसके दावे को खारिज करने वाले SP द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसके दिवंगत पति ने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया था और उसने नोटरी पब्लिक के सामने इस आशय का एक हलफनामा दिया था कि उसने 1998-99 में आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार तलाक लिया।

उसने आगे कहा कि उसका पति और पहली पत्नी पिछले 15 सालों से अलग रह रहे थे और उसका उसके शरीर और संपत्ति पर कोई दावा नहीं है। वहीं, मध्य प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि 1965 के नियमों के अनुसार, एक सरकारी कर्मचारी को दो पत्नियां रखने का अधिकार नहीं है। वर्मा ने आगे तर्क दिया कि नोटरी के सामने दिया गया हलफनामा पहली पत्नी से तलाक का सबूत नहीं है।

हाई कोर्ट

जस्टिस अग्रवाल ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि पर्सनल लॉ के बावजूद कोई भी सरकारी कर्मचारी पहली बार आधिकारिक अनुमति प्राप्त किए बिना पुनर्विवाह का हकदार नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई। इस प्रकार, पेंशन संबंधी लाभों के लिए उसके दावे की कोई कानूनी वैधता नहीं है। बेंच ने आगे कहा कि इस प्रकार, दूसरी पत्नी के रूप में याचिकाकर्ता के दावे की कोई कानूनी वैधता नहीं है क्योंकि रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि मृतक उत्तम सिंह मरावी ने अपनी पहली पत्नी वर्षा कुमारी को तलाक दे दिया था।

कोर्ट ने कहा कि वास्तव में हलफनामे में नाम का उल्लेख रेणु कुमारी के रूप में किया गया है, जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में नाम वर्षा कुमारी के रूप में उल्लिखित है। इस प्रकार हलफनामे की वास्तविकता भी संदेह के दायरे में है। अदालत ने कहा कि नियमों के आलोक में जांच किए जाने पर आक्षेपित आदेश को अवैध या मनमाना नहीं कहा जा सकता। जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि दूसरी पत्नी होने का दावा कर रही याचिकाकर्ता को फैमिली पेंशन से इनकार करने का कारण बताते हुए यह एक स्पष्ट आदेश है।

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