मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में पैरामिलिट्री बैकग्राउंड को ध्यान में रखते हुए एक नाबालिग बच्चे की कस्टडी पिता को दे दी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने बच्चे की कस्टडी से जुड़े एक मामले पर फैसला करते हुए पिता की पैरामिलिट्री बैकग्राउंड को प्राथमिकता दी। पिता को कस्टडी प्रदान करते हुए चीफ जस्टिस रवि मालिमथ और जस्टिस आनंद पाठक की खंडपीठ ने कहा कि उनकी पैरामिलिट्री बैकग्राउंड बच्चे के समग्र विकास और व्यक्तित्व विकास के लिए उसके लाभ के लिए काम करेगी।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, वर्तमान मामले में प्रतिवादी/पिता I.T.B.P पैरामिलिट्री फोर्स में एक कांस्टेबल के रूप में कार्यरत है और नियमित सैलरी उठा रहे हैं। प्रतिवादी/पिता की शादी अपीलकर्ताओं की बेटी से हुई थी और उनका एक बच्चा भी था। हालांकि, कुछ दिन बाद उनके बीच मतभेदों के कारण, कपल अलग हो गए और पत्नी अपीलकर्ताओं के साथ रहने के लिए वापस अपने मायके चली गई और बच्चे को भी अपने साथ ले गई। बाद में पत्नी ने किसी कारणवश आत्महत्या कर ली। इसके बाद प्रतिवादी के खिलाफ धारा 304-B, 498-A, 506, 34 IPC और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, बाद में उसे बरी कर दिया गया था।
अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद, प्रतिवादी ने अभिभावक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 की धारा 6 के तहत अपीलकर्ताओं/नाना-नानी से अपने बेटे की कस्टडी की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया। निचली अदालत ने उसके आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिससे निर्देश दिया कि वह बच्चे की कस्टडी में रहेगा। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
अपीलकर्ता का तर्क
अपीलकर्ताओं ने हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि प्रतिवादी/पिता भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में एक कांस्टेबल हैं। चूंकि उन्हें लंबे समय तक काम करना पड़ता था, इसलिए वे बच्चे की देखभाल और ध्यान देने में सक्षम नहीं थे। याचिका में यह भी बताया गया कि उनकी हमेशा ट्रांसफर होती रहती थी और उनकी सैलरी भी बच्चे की परवरिश के लिए पर्याप्त नहीं था। अपीलकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि बच्चा प्रतिवादी के साथ रहने के लिए इच्छुक नहीं था और उसने अपने पिता के बजाय अपने नाना-नानी को प्राथमिकता दी। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई कि आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाए और उन्हें बच्चे की कस्टडी प्रदान की जाए।
पिता का तर्क
इसके विपरीत, प्रतिवादी/पिता ने तर्क दिया कि उनके पास आय का एक स्थिर स्रोत है और वह अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपने बेटे के प्राकृतिक संरक्षक हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चे के लिए उसके साथ रहना बेहतर होगा, क्योंकि वह पैरामिलिट्री फोर्स की जीवन शैली से अवगत होगा, जो उसके समग्र विकास के लिए अच्छा होगा। यह भी बताया गया कि नाबालिग की नानी बच्चे की सौतेली दादी है न कि वास्तविक या जैविक…। इसलिए, उन्होंने अनुरोध किया कि अपील को खारिज कर दिया जाए और उन्हें अपने बच्चे की कस्टडी की अनुमति दी जाए।
हाई कोर्ट का आदेश
पक्षकारों के तर्त और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करने पर अदालत ने प्रतिवादी/पिता द्वारा रखी गई दलीलों को सही पाया। न्यायालय ने पाया कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, बच्चा पिता के साथ बेहतर तरीके से रहेगा। कोर्ट ने कहा कि जब मामले को नाबालिगों के कल्याण और पक्षकारों के तुलनात्मक संसाधनों और मामले में शामिल भावनात्मक विशेषताओं की कसौटी पर परखा जाता है, तो परिस्थितियों की समग्रता को संतुलित करने के बाद केवल एक निष्कर्ष अपरिहार्य प्रतीत होता है।
कोर्ट ने कहा कि निष्कर्ष यह है कि बच्चे का कल्याण अपने पिता के साथ रहने में ही है। अपीलकर्ताओं द्वारा भरोसा किया गया निर्णय विभिन्न तथ्यात्मक दायरे में चलता है। इसलिए, तथ्यों के वर्तमान सेट में लागू नहीं होता है। विचार और निष्कर्षों की पड़ताल करने के बाद इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई अवसर मौजूद नहीं है। तदनुसार हम आक्षेपित आदेश की पुष्टि करते हैं और अपील को खारिज करते हैं।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, अपीलकर्ता की अपील खारिज कर दी गई। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि बच्चे को पिता को सौंपने के बाद, अपीलकर्ताओं के पास बच्चे के साथ बातचीत करने और उसकी समग्र भलाई पर ध्यान देने का अधिकार होगा।
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