मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने 30 मार्च, 2022 के अपने फैसले में दोहराया है कि पति या पत्नी द्वारा इस आधार पर दायर याचिका पर तलाक की डिक्री द्वारा विवाह को भंग किया जा सकता है कि विवाह के अनुष्ठापन के बाद दूसरे पक्ष ने विवाह को पूर्ण करने में सहयोग नहीं किया है। हाई कोर्ट ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और पति को तलाक दे दिया, क्योंकि दंपति 15 साल से अलग रह रहे थे।
क्या है पूरा मामला?
इस कपल के बीच अक्टूबर 2007 में CSI सेंट जॉर्ज कैथेड्रल चर्च, चेन्नई में विवाह संपन्न हुआ था। अपीलकर्ता पति भारतीय सेना में मेजर के पद पर कार्यरत है और प्रतिवादी गृहिणी है।
पति का आरोप
अपीलकर्ता और प्रतिवादी ने पहली रात चेन्नई स्थित होटल GRT ग्रांड में बिताई थी। लेकिन, दुर्भाग्य से प्रतिवादी ने यौन क्रिया/सहवास से परहेज किया। अगले दिन, अपीलकर्ता और प्रतिवादी प्रतिवादी के घर गए, उस रात भी उसने थकान की आड़ में सहवास से इनकार कर दिया और अगले दिन वे अन्ना नगर में अपीलकर्ता के घर गए। लेकिन, उस रात भी उसने इसी वजह से यौन संबंध बनाने से मना कर दिया था।
पति ने कहा कि बाद में जब वह अपनी पत्नी को हनीमून के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप पर ले गया और वहां सात दिनों तक रहा, तो प्रतिवादी ने बिस्तर साझा करने से इनकार कर दिया और उन सभी दिनों के लिए अपीलकर्ता के साथ सहवास से परहेज किया।
अपीलकर्ता और प्रतिवादी फिर चेन्नई लौट आए और यहां भी प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के साथ सहवास से इनकार कर दिया। आगे यह तर्क दिया जाता है कि विवाह की तारीख से प्रतिवादी अपीलकर्ता के साथ दाम्पत्य संबंध रखने और किसी न किसी कारण से अपने सहवास को स्थगित करने के लिए इच्छुक नहीं था।
यह लगभग पांच महीने तक ये सिलसिला जारी रहा और फिर, अपीलकर्ता ने प्रतिवादी को मेडिकल जांच के लिए जाने की सलाह दी, जिसके लिए प्रतिवादी ने इनकार कर दिया। इसके बाद, प्रतिवादी ने जानबूझकर अपीलकर्ता से परहेज किया और अपने भाई के स्थान पर रहने लगी। शीला ने भी अपने ससुराल में शामिल होने से इनकार कर दिया।
अपीलकर्ता ने आखिरकार शादी को समाप्त करने से इनकार करने और क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। प्रतिवादी ने कार्यवाही में उपस्थित होने के बाद याचिका के निपटारे तक भरण-पोषण की मांग करते हुए आवेदन दायर किया और साथ ही उसने सेना पत्नी कल्याण संघ और अन्य वरिष्ठ सेना अधिकारी को अपीलकर्ता की प्रतिष्ठा को कम करने के लिए पत्र भेजे। प्रतिवादी की गतिविधियों ने अपीलकर्ता को गंभीर कठिनाई और मानसिक पीड़ा पैदा की थी।
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