मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में एक स्थानीय महिला अदालत द्वारा दोषी ठहराई गई एक महिला की उम्रकैद की सजा कम कर दी। महिला अपनी 13 वर्षीय बेटी पर मिट्टी का तेल डालकर उसे जिंदा जला दी थी। हत्या के वक्त नाबालिग लड़की सो रही थी।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, 6 जनवरी को पारित एक फैसले में मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ के जस्टिस पीएन प्रकाश (अब रिटायर्ड) और जस्टिस जी जयचंद्रन ने अपीलकर्ता राजेश्वरी के आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। अदालत के इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद आदेश पारित किया गया कि महिला का अपनी बेटी को मारने का कोई इरादा नहीं था।
इसलिए, उसने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत उसे हत्या के लिए दोषी ठहराने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। इसके बजाय यह फैसला सुनाया कि उसे केवल IPC की धारा 304 (1) के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि राजेश्वरी अपनी बेटी मारीसेल्वी से नाराज थी, क्योंकि मारीसेल्वी अपने हॉस्टल से भाग गई थी। वह यह कहकर घर आ गई थी कि उसकी पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बाद राजेश्वरी आगबबूला हो गई और 12 जून 2012 को मृतक मारीसेल्वी के घर आने के एक दिन बाद उसने आग लगा ली। पीड़िता ने घटना के चार महीने बाद दम तोड़ दिया था।
स्थानीय अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा
राजेश्वरी को 2019 में स्थानीय अदालत ने गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, राजेश्वरी ने अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की।
हाई कोर्ट का आदेश
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि अदालत के सामने सवाल यह पता लगाने का था कि क्या उसे आग लगाने में राजेश्वरी की मंशा बेटी को मारने की थी? अदालत ने कहा कि मामले में सबूतों के आधार पर यह माना जाता है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत राजेश्वरी की दोषसिद्धि “टिकाऊ नहीं” थी। आदेश में कहा गया है कि इसके बजाय, उसे केवल आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, जो हत्या की कैटेगरी में नहीं आता है।
कोर्ट ने कहा कि हमारे पास इस मामले में दो मरने से पहले दिए गए बयान हैं, जैसे मारीसेल्वी द्वारा पुलिस सब-इंस्पेक्टर को दी गई शिकायत और एक उसके द्वारा विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट नंबर II, कोविलपट्टी को दी गई। दोनों मरने से पहले की घोषणाओं में उसने कहा है कि चूंकि वह ठीक से पढ़ नहीं रही थी। इसलिए उसकी मां उससे नाराज थी और जब वह हॉस्टल से घर लौटी, तो उसकी मां ने उससे पूछताछ की और उसके बाद मिट्टी का तेल डाला और आग लगा दी। लेकिन सवाल यह है कि क्या अपीलकर्ता का अपनी बेटी की हत्या करने का इरादा था?
यह नोट किया गया कि मारिसेल्वी को उसके पिता द्वारा अस्पताल ले जाया गया था और इस घटना में उसे 50 प्रतिशत जलने की चोटों के लिए चार महीने तक इलाज किया गया था। इन चार महीनों के दौरान उसे इस आधार पर दो बार अस्पताल से छुट्टी दे दी गई कि उसकी जलन ठीक नहीं हो रही है, और उसे फिर से भर्ती कराया गया।
अस्पताल में मरीसेल्वी ने अपना बयान पुलिस और मजिस्ट्रेट को पूरी घटना के बारे में बताया। 1 अक्टूबर, 2012 को उसकी चोटों के कारण मृत्यु हो गई। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि यह मानते हुए कि मारीसेल्वी के पिता ने भी पुष्टि की थी कि उसे “पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह कई बार अस्पताल में आती-जाती रही थी, और यह कि राजेश्वरी अस्पताल में भर्ती होने के समय गुस्से में थी। घटना, यह आईपीसी की धारा 304 (1) का मामला था न कि हत्या का मामला।
हाई कोर्ट ने कहा कि इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता की सजा को बरकरार नहीं रख सकते हैं और इसके बजाय धारा 304 (1) आईपीसी के तहत सजा हो सकती है।
Join our Facebook Group or follow us on social media by clicking on the icons below
If you find value in our work, you may choose to donate to Voice For Men Foundation via Milaap OR via UPI: voiceformenindia@hdfcbank (80G tax exemption applicable)