वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध मानने संबंधी याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई के बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार को कहा कि सहमति समाज में कमतर आंकी गई अवधारणाओं में से एक है और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे सर्वोपरि रखना चाहिए। गांधी ने हैशटैग ‘मैरिटल रेप’ का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट किया, ‘‘सहमति हमारे समाज में कमतर आंकी गई अवधारणाओं में से एक है। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे सर्वोपरि रखना चाहिए।’’
क्या है पूरा मामला मामला?
दरअसल, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर हाई कोर्ट में सुनवाई के बीच कांग्रेस नेता ने यह टिप्पणी की है। याचिकाओं में बलात्कार संबंधी कानून के तहत पतियों को माने गए अपवाद को खत्म करने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता एनजीओ ने आईपीसी की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपवाद माने जाने की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है, जिनका उनके पति यौन उत्पीड़न करते हैं।
वहीं, कुछ पुरुष अधिकार संगठनों ने भी याचिका दायर की है, जो अपवाद को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि भेदभाव का सवाल ही नहीं है और संसद ने भारतीय समाज के समग्र दृष्टिकोण को देखते हुए प्रावधान को बरकरार रखा है।
दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से कहा कि वह कानूनी अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगा, जो उन पुरुषों की रक्षा करता है जिन्होंने अपनी पत्नियों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए आपराधिक अभियोजन से बचाव किया है। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानूनों में सुधार शुरू करने की सरकार की चल रही प्रक्रिया की प्रतीक्षा न करें।
दिल्ली सरकार का पक्ष
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत वैवाहिक बलात्कार को पहले से ही ‘‘क्रूरता के अपराध’’ के रूप में शामिल किया गया है। दिल्ली सरकार ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया है कि एक अदालत के पास एक नया क्राइम बनाने का पावर नहीं है, भले ही यह तर्क दिया जाए कि वैवाहिक बलात्कार को भारत में “क्रूरता का अपराध” माना जाता है, जो आईपीसी के तहत घरेलू हिंसा, मारपीट या क्रूरता के आरोपों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
केंद्र का पक्ष
केंद्र सरकार की तरफ से गुरुवार को अपने दायर हलफनामे में कहा गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद, जो बलात्कार के अपराध से अपनी ही पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध को छूट देता है, को अकेले याचिकाकर्ता के कहने पर नहीं हटाया जा सकता है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने कहा कि “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के लिए सभी हितधारकों की बड़ी सुनवाई की आवश्यकता है।”
सरकार की याचिका मौजूदा स्थिति में कोई बदलाव नहीं होने का संकेत देती है और केंद्र का यह बयान वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की बढ़ती मांग के बीच आई है। यह बताते हुए कि आपराधिक कानून में संशोधन “एक सतत प्रक्रिया” है, हलफनामे में कहा गया है कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, भारत के चीफ जस्टिस, सभी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, न्यायिक अकादमियों, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सभी हाई कोर्टों की बार काउंसिल और संसद के दोनों सदनों के सदस्य से सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। हालांकि, एचटी के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय के माध्यम से दायर हलफनामे में उस तारीख का उल्लेख नहीं है, जब विचार मांगे गए हैं।
केंद्र ने 2008 और 2010 में संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि किसी भी विशिष्ट कानून में कोई टुकड़ा-टुकड़ा बदलाव करने के बजाय आपराधिक कानूनों को पूरी तरह कायापलट की आवश्यकता है। केंद्र ने मामले में मार्च 2020 में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इससे ऐसी स्थिति बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है। हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक केंद्र ने गुरुवार को इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में कहा कि वह मैरिटल रेप को क्राइम घोषित करने पर विचार कर रही है। इसके लिए सभी राज्य सरकारों, भारत के चीफ जस्टिस, सांसदों और अन्य लोगों से सुझाव मांगे गए हैं।
इसके अलावा इसी विषय पर सरकार ने 2017 में भी एक हलफनामा जारी किया था जिसमें कहा गया था कि जो एक पत्नी के लिए वैवाहिक बलात्कार प्रतीत हो सकता है… हो सकता है कि दूसरों के लिए ऐसा न हो। अगर एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ किए गए सभी यौन कृत्य वैवाहिक बलात्कार के योग्य होंगे, तो यह फैसला कि क्या यह वैवाहिक बलात्कार है या नहीं, अकेले पत्नी पर निर्भर करेग। सवाल यह है कि ऐसी परिस्थितियों में अदालतें किन सबूतों पर भरोसा करेंगी, क्योंकि पुरुष और उसकी अपनी पत्नी के बीच यौन कृत्यों के मामले में कोई स्थायी सबूत नहीं हो सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (रेप) के तहत प्रावधान किसी व्यक्ति द्वारा उसकी पत्नी के साथ शारीरिक संबंधों को बलात्कार के अपराध से छूट देता है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक हो। अधिकांश दलीलें लगभग पूरी हो जाने के बाद पीठ ने रेबेका जॉन को न्याय मित्र नियुक्त किया है।
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VIDEO:
Late Ram Jethmalani On Marital Rape Law
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